धार्मिक स्वतंत्रता शांति का एकमात्र यथार्थ मार्ग है- कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेशियस
पहली जनवरी 2011 को मनाये जानेवाले विश्व शांति दिवस के लिए संत पापा बेनेडिक्ट द्वारा
चुने गये शीर्षक धार्मिक स्वतंत्रता शांति का पथ पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुम्बई
के महाधर्माध्यक्ष और भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डिनल ओसवाल्ड
ग्रेशियस ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता शांति का एकमात्र यथार्थ मार्ग है। यह शीर्षक
भारत और सम्पूर्ण विश्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण है- मौलिक मानवाधिकारों के प्रति सम्मान
तथा आज के विश्व पर निर्णायक चिंतन है। कार्डिनल महोदय ने उक्त शीर्षक पर फीदेस
समाचार सेवा से बातचीत करते हुए कहा कि भारत के संदर्भ में समाज के सामने दो गंभीर मुददे
हैं- हिन्दु चरमपंथ तथा धर्म परिवर्तन रोकने संबंधी कानून जो देश के अनेक राज्यों में
लागू हैं। उन्होंने कहा कि भारत में बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक समाज में कुछेक समूह
धर्म को गलत तरीके से समझते हैं और अन्य हितों को पूरा करने के लिए इसका उपयोग करते हैं,
इसे संघर्ष का कारण बना देते हैं और समाज में व्याप्त सदभावना के वातावरण को बाधित करते
हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय कलीसिया अन्यों के साथ समधुर संबंध बनाने के लिए प्रयास
कर संवाद और स्वतंत्रता के प्रति सम्मान का प्रसार करती है। शांति स्थापना और सर्वोत्तम
भलाई के लिए यह असरकारी पथ है। ख्रीसत्यी इस तरीके से मानव परिवार की रचना करने के लिए
अपना योगदान अर्पित करते हैं। कार्डिनल महोदय ने कहा कि संत पापा ने जो शीर्षक चुना
है वह धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता सहित जिसे कम कर नहीं आँका जा सकता है प्रत्येक व्यक्ति
के अंतःकरण की सर्वोच्च स्वतंत्रता के बारे में कहता है। धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति
सम्मान का अर्थ है कि मानव ह्दय के अस्तित्व और इसकी गहन स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप करने
का अधिकार किसी भी सरकार या नागरिक अधिकारी को नहीं है। यह मौलिक मानवाधिकार है, जो भी
व्यक्ति इस अधिकार पर हमला करता है वह शांति और भाईचारे की भावना पर ही आक्रमण करता है।