वाटिकन सिटीः पुरोहित वर्ष के समापन पर वाटिकन प्रवक्ता की टिप्पणी
पौरोहित्य ईश्वर का वरदान है किन्तु वह मिट्टी के मर्तबानों में ढोया जाता है जैसा कि
कुछेक पुरोहितों के पाप स्पष्टतः दर्शाते हैं। वाटिकन टेलेविज़न के साप्ताहिक कार्यक्रम
"ओक्तावा दियेज़" में वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने यह वकतव्य दिया। फादर
लोमबारदी ने अपने विचार पुरोहितों को समर्पित वर्ष पर केन्द्रित रखे जिसका समापन शुक्रवार
11 जून को हो गया था। उन्होंने कहा कि पुरोहित वर्ष के समापन समारोह "सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें के साथ विश्व के काथलिक पुरोहितों के महासमारोह थे। रोम में एकत्र लगभग 10,000
पुरोहितों ने विश्व के उन पुरोहितों का प्रतिनिधित्व किया जो उनके भावों में एकप्राण
थे। विश्वास एवं प्रार्थना के समारोही भावों में।" उन्होंने कहा कि सन्त पापा ने यथार्थ
पुरोहित को परिभाषित कर यह स्पष्ट कर दिया है कि हम पौरोहित्य को एक नौकरी न मानें, उसे
हम मानवीय व्यावसाय न मानें बल्कि ईश्वर का वरदान मानें। उस ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान
जो स्वतः को मानव के सिपुर्द कर देते हैं ताकि मानव उनके नाम पर क्षमा के शब्दों का उच्चार
करे तथा लोगों को इस विश्व में उनकी उपस्थिति का एहसास दिलाये। सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें के शब्दों को उद्धृत कर उन्होंने कहा कि पुरोहित प्रभु ख्रीस्त के प्रति आकर्षित
वह व्यक्ति है जो, ईश वचन के उच्चार तथा संस्कारों के सम्पादन द्वारा, आज, कल और भविष्य
में भी ईश्वर का साक्षी बनने के लिये आमंत्रित है। फादर लोमबारदी ने स्मरण दिलाया
कि सन्त पापा ने पुरोहित वर्ष के समापन समारोह के लिये आयोजित रात्रि जागरण के अवसर पर
कहा था, "पुरोहितों द्वारा किये यौन दुराचार, सन्त पौल के सदृश, इस तथ्य को रेखांकित
करते हैं कि ईश्वर का वरदान मिट्टी के मर्तबानों में छिपा है।" सन्त पापा कहते हैं, "पौरोहित्य
को वरदान रूप में ग्रहण किया जाना चाहिये मनुष्य की महिमा के लिये नहीं। विनम्रता एवं
साहस के साथ उसका स्वागत किया जाना चाहिये तथा ईश्वर से संरक्षण की याचना करते हुए उसकी
सुरक्षा के प्रयास किये जाने चाहिये ताकि वह पाप से दूषित न हो।" उन्होंने कहा कि
कलीसिया पौरोहित्य के वरदान के बिना जी नहीं सकती इसलिये इस वरदान को पाने के लिये प्रभु
ईश्वर से सतत् एवं अनवरत प्रार्थना करने की आवश्यकता है।