2010-06-04 12:28:12

साईप्रस की ऐतिहासिक पृष्टभूमि


9.251 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत साइप्रस भूमध्य सागर का तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है। इसे यूरोप, एशिया और अफ्रीका, तीन महाद्वीपों का संगम माना जाता है। ग्रीस के पूर्व, लेबनान सिरिया और इसराएल के पश्चिम, मिस्र के उत्तर और तुर्की के दक्षिण में स्थित साईप्रस एक यूरेशियन द्वीप देश है जिसका आधिकारिक नाम है साईप्रस गणतंत्र। इसकी राजधानी निकोसिया है। इसकी मुख्य- और राजभाषाएँ ग्रीक और तुर्की हैं जबकि अँग्रेज़ी भी बोली जाती है। साईप्रस की कुल आबादी 7,94,000 है जिनमें 2,71,000 लोग देश के उत्तरी भाग यानि तुर्की के कब्ज़े वाले साईप्रस में जीवन यापन करते हैं।

अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण प्रारम्भिक काल से ही साईप्रस का इतिहास घटनाओं से परिपूर्ण रहा है। ईसा पूर्व 13 वीं शताब्दी में यूनानी व्यापारियों का यहाँ आगमन हुआ जिनमें से अनेक यहीं आकर बस गये। यूनानी व्यापारियों एवं आप्रवासियों के साथ साईप्रस में ग्रीक भाषा और संस्कृति का भी सूत्रपात हुआ जो आज तक देश का अभिन्न अंग बनी हुई हैं। ईसा पूर्व चौथी सदी के अन्त में साईप्रस अलेक्जेंडर महान के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। तदोपरान्त ईसा पूर्व पहली शताब्दी के दौरान यह महान रोमन साम्राज्य का एक प्रांत बना और इसी समय से यहाँ बीज़ेनटाईन काल की शुरुआत हुई जो 12 वीं शताब्दी तक बरकरार रहा। 12 वीं शताब्दी के क्रूस युद्ध के दौरान राजा रिचर्ड कोर दे लियोन साईप्रस द्वीप पर विजय हुए किन्तु इसके तुरन्त बाद लूसिनान परिवार ने द्वीप को अपने कब्ज़े में कर लिया तथा 15 वीं शताब्दी तक इस पर राज्य किया। सन् 1489 ई. में साईप्रस वेनिस गणतंत्र के अधीन ले लिया गया तथा 1571 ई. में ऑटोमन साम्राज्य ने इस पर विजय प्राप्त कर ली। शताब्दियों तक साईप्रस ग्रीक मुख्य भूमि तथा ग्रीक द्वीपों सहित ऑटोमन साम्राज्य के अधीन रहा। तथापि 1821 में ग्रीक क्रान्ति के बाद अनेक ग्रीक द्वीप स्वतंत्र कर लिये गये। साईप्रस ने भी यूनानी मुक्ति संघर्ष में भाग लिया तथा आथेन्स की लड़ाई में हज़ारों साईप्रस वासी मारे गये। यूनानी मुक्ति संघर्ष के आरम्भ में साईप्रस पर कब्ज़ा करनेवाले तुर्की अधिकारियों ने अनेक ख्रीस्तीय धर्माध्यक्षों पर संघर्ष भड़काने का आरोप लगाकर उन्हें प्राणदण्ड दे डाला था।

सन् 1830 ई. में साइप्रस को ग्रीक राज्य में शामिल करने पर सवाल उठे किन्तु तुर्कियों ने ऐसा सम्भव नहीं होने दिया और साईप्रस 1878 तक तुर्क शासन के अधीन ही रहा। इसी वर्ष रूस के ज़ारों की विस्तारीकरण नीति के तहत तुर्कियों ने साईप्रस को ब्रिटेन के अधीन कर दिया और बदले में ब्रिटेन ने तुर्की को रूस द्वारा हमलों से बचाने का वादा किया। तुर्कियों तथा ब्रिटेन के बीच जो भी समझौते हुए उसमें साईप्रस के लोगों की बिलकुल उपेक्षा कर दी गई जो साईप्रस द्वीप को ग्रीस का हिस्सा बनाना चाहते थे।

प्रथम विश्व युद्ध के आरम्भ तक साइप्रस ब्रिटिश साम्राज्य के कब्जे में आ गया तथा 1925 में इसे औपचारिक रूप से एक ब्रिटिश क्राउन कॉलोनी घोषित कर दिया गया। जब साइप्रस एक ब्रिटिश क्राउन कॉलोनी द्वीप घोषित किया गया तब तुर्की जनसंख्या को साईप्रस के नागरिक बनने अथवा अपने देश लौटने के लिये आमंत्रित किया गया। अनेक तुर्कियों ने साईप्रस में ही रहना पसन्द कर लिया जो स्थायी रूप से वहाँ के निवासी बन गये। उस समय तक इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया था कि तुर्की अल्पसंख्यक देश की नियति का फैसला करेंगे। सन् 1955 ई. तक तुर्की लोग साईप्रस की ग्रीक जनता के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में जीवन यापन करते रहे किन्तु सन् 1959 ई. में साईप्रस ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त की और तब से ही तुर्कियों एवं ग्रीक सिप्रियेट जनता के बीच झगड़े आरम्भ हो गये थे।

1974 में ये झगड़े सघन हो गये जिसके बाद तुर्की ने हमला कर द्वीप के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया। इसके चलते हजारों ग्रीक साइप्रियोट विस्थापित हो गये जिन्होंने द्वीप के उत्तरी क्षेत्र में एक अलग ग्रीक साइप्रियोट राजनीतिक सत्ता कायम की। इस घटना के बाद से उत्पन्न परिस्थितियों और राजनैतिक स्थिति की वजह से आज भी विवाद कायम है। द्वीप के दक्षिण में 59% क्षेत्र साईप्रस गणतंत्र का है जबकि शेष उत्तरी भाग तुर्की के कब्जे में है जिसे केवल तुर्की की मान्यता प्राप्त है। उत्तरी सीमा पर तुर्की ने 35,000 सैनिकों को भी तैनात कर रखा है।

धर्मों के अस्तित्व की दृष्टि से अधिकांश ग्रीक सिप्रियट्स ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं जबकि तुर्की सिप्रियट्स सुन्नी मुसलमान हैं। देश के दक्षिणी भाग में 94 प्रतिशत जनता ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीय है, 3.15 प्रतिशत यहाँ काथलिक धर्मानुयायी हैं जिनमें मारोनी, लातीनी एवं आरमीनियाई काथलिक सम्मिलित हैं, इस्लाम धर्मानुयायी यहाँ केवल 0.6 प्रतिशत हैं। हाल के दशक में एशिया एवं अफ्रीका के लगभग एक लाख आप्रवासी भी नौकरी की तलाश में यहाँ आ बसे हैं जिनमें पंजाब के पाँच सौ सिक्ख परिवार भी शामिल हैं।












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