2010-05-12 16:37:08

लिस्बन में संस्कृति जगत के बुद्धिजीवियों को संत पापा का संदेश


संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने बेलेम के सांस्कृतिक केन्द्र में संस्कृति शिक्षा एवं कला के जगत के बुद्धिजीवियों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि वे सबसे मिलते हुए प्रसन्न हैं ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शोध और संचार के कार्य में लगे हैं, पुर्तगाल की समृद्ध संस्कृति के योग्य प्रतिनिधि हैं।

संत पापा ने कहा कि आज की संस्कृति में वास्तव में तनाव प्रवेश कर गया है जो बहुत बार वर्तमान तथा परम्परा के बीच संघर्ष का रूप लेता है। समाज की गतिशीलता, वर्तमान को पूर्ण महत्व या मूल्य प्रदान करती है इसे अतीत की सांस्कृतिक विरासत से अलग करती है तथा भविष्य के लिए रास्ता खोजने का प्रयास नहीं करती है। जीवन का अर्थ पाने के लिए प्रेरणा के स्रोत रूप में वर्तमान पर बल देना, पुर्तगाली जनता की सशक्त सांस्कृतिक परम्परा, जो सदियों की ईसाईयत के प्रभाव तथा वैश्विक जिम्मेदारी की भावना, के साथ है वह टकराती है। सार्वभौमिकता और भ्रातृत्व संबंधी ईसाई आदर्शों ने पुर्तगाल के विभिन्न अभियानों और खोजों को प्रेरणा प्रदान किया। जीवन और इतिहास की समझ तथा नैतिक मूल्यों को पुर्तगाल ने साकार करने के प्रयासों द्वारा विश्व के अन्य भागों के साथ संबंध स्थापित करना चाहा। कलीसिया इन्हीं समृद्ध परम्परा के द्वारा समाज की सेवा में विशेष योगदान देना चाहती है।

संत पापा ने कहा कि समाज द्वारा सामान्य हित की सेवा में कलीसिया के योगदान की सराहना की जाती है लेकिन समाज उस विवेक से स्वयं को दूर करना चाहता है और यहीं परम्परा तथा वर्तमान के बीच संघर्ष होता है और जिसकी अभिव्यक्ति सत्य के संकट रूप में व्यक्त होती है तथापि सत्य की सेवा करना कलीसिया का मिशन है जिसका वह परित्याग नहीं कर सकती है। आज के विश्व में समाज के साथ संवाद करना महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक भिन्नता की सच्चाई को देखते हुए लोगों को न केवल अन्यों की संस्कृति के अस्तित्व को स्वीकार करने की जरूरत है बल्कि इससे समृद्ध होने की आकांक्षा रखने तथा जो अच्छा, सत्य और सुंदर है उसे इसे अर्पित भी करना है। विश्वासियों के साथ वार्ता करने से नहीं डरें जो इस संसार में अनन्त सौंदर्य की दिशा में यात्री हैं।

संत पापा ने कहा कलीसिया मानती है कि आज की संस्कृति में उसका मुख्य मिशन लोगों में सत्य, ईश्वर तथा परम सत्य की खोज को जीवित रखना है। मैं आपको प्रोत्साहन देता हूँ कि ईश्वर के बारे में अपने ज्ञान को गहरा करें जैसा कि येसु में प्रकट किया गया है। वे सुन्दर चीजों की रचना करें तथा अपने जीवन को सौंदर्य़ का स्थल बनायें।








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