2010-04-18 12:47:02

सन्त पौल के पोतभंग की 1950 वीं वर्षगाँठ की स्मृति बेनेडिक्ट 16 वें की माल्टा यात्रा का उद्देश्य


कलीसिया के महान प्रेरित सन्त पौल के पोतभंग की 1950 वीं वर्षगाँठ की स्मृति समारोहों का नेतृत्व कर धर्म के प्रति उदासीन होते विश्व में माल्टा के लोगों में विद्यमान धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को पुनः जागृत करना सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की माल्टा यात्रा का उद्देश्य है। यद्यपि हाल के माहों में यूरोप के कई देशों में कुछ काथलिक पुरोहितों के दुराचारों के कारण काथलिक कलीसिया पर कुकर्मों को छिपाये रखने के आरोप लगें हैं जिन्हें मीडिया ने भी बहुत तूल दिया है तथापि सन्त पापा की माल्टा यात्रा, वाटिकन प्रवक्ता फादर लोमबारदी के अनुसार, पापों के लिये पश्चाताप तथा मनन-चिन्तन के भाव में सम्पादित हो रही है।

ख्रीस्तीय धर्म के इतिहास की ओर यदि दृष्टिपात करें तो सन् 60 ई. में येरूसालेम से रोम की यात्रा के दौरान यहीं पोत भंग के कारण सन्त पौल ने पड़ाव किया था इसीलिये उन्हें माल्टा के प्रेरित एवं प्रचारक माना गया है। विगत सप्ताह माल्टा महाधर्मप्रान्त ने घोषणा की थी कि माल्टा में सन्त पौल के पोतभंग की एक हज़ार नौ सौ पचासवीं वर्षगाँठ के स्मरणार्थ सन्त पापा की यात्रा का आयोजन किया गया है। बाईबिल के प्रेरित चरित ग्रन्थ के अनुसार ग़ैर विश्वासियों के प्रेरित नाम से विख्यात सन्त पौल का माल्टा के लोगों ने अपने यहाँ भावपूर्ण स्वागत किया था। रोम के लिये रवाना होने से पूर्व सन्त पौल तीन माहों तक माल्टा में रहे तथा उन्होंने उनमें येसु मसीह के सुसमाचार का प्रचार किया। द्वीप पर उन्हें एक ज़हरीले साँप ने डस लिया था किन्तु इससे उन्हें कोई शारीरिक हानि नहीं हुई। येसु के नाम पर उन्होंने कई लोगों को रोगों से मुक्ति दिलाई तथा उनमें विश्वास लौ जगाई इसीलिये सन्त पौल को माल्टा का प्रेरित कहा जाता है।

शनिवार को माल्टा के निवासियों की ओर से हवाई अड्डे पर सन्त पापा के् आदर में अभिवादन पत्र पढ़ते हुए माल्टा गणतंत्र के राष्ट्रपति जॉर्ज आबेला ने भी प्रेरितिक यात्रा के उद्देश्य की पुनरावृत्ति करते हुए कहा, "हम हर्षित हैं कि सन्त पौल के मित्र, सन्त पेत्रुस के उत्तराधिकारी माल्टा में सन् 60 में हुए सन्त पौल के पोतभंग की 1950 वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये उनके विश्वसनीय रेवड़ के साथ उपस्थित हैं।" .....................राष्ट्रपति ने कहा कि सन्त पौल के आगमन ने माल्टा को एक नई अस्मिता प्रदान कीः ख्रीस्तीय अस्मिता जिसने शनैः शनैः उसकी ग़ैरविश्वासी एवं बहुदेववादी संस्कृति को ख्रीस्तीय संस्कृति में परिणत कर दिया। उन्होंने कहा कि आज माल्टा सामाजिक और आर्थिक रूप से समृद्ध देश है किन्तु समस्याओं से खाली नहीं है। यूरोप के अन्य देशों के सदृश ही वह धर्म के प्रति उदासीनता और धर्म विरोधी विचारधारा से जूझ रहा है तथापि वह जानता है कि धर्म के बहिष्कार से नहीं अपितु अपने नैतिक अन्तःकरण को नई सजीवता प्रदान कर ही वह नैतिक रूप से एक मज़बूत समाज बन सकता है। उन्होंने कहा कि माल्टा वासी इस बात को जानते हैं कि अन्यों के प्रति सम्मान एवं ईश्वर के प्रति श्रद्धा ही विकास, जनकल्याण एवं समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।








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