2010-04-13 10:05:01

शांति तब ही संभव जब मानव, मानव के चेहरे में ईश्वर को पहचाने- संत पापा


वाटिकन सिटी, 1 जनवरी, 2010 (जेनित)। संत पापा ने कहा है कि शांति तब ही संभव है जब मानव दूसरे मानव को जाति, राष्ट्रीयता, भाषा और धर्म का भेदभाव किये बिना मानव होने का सम्मान दे।


संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब वे नये साल के दिन ' माता मरिया - ईश्वर की माता ' के पर्व दिवस के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर में यूखरिस्तीय बलिदान में प्रवचन दे रहे थे।


संत पापा ने कहा कि शांति तब ही संभव है जब मानव अपने दिल में ईश्वर को सर्वोच्च स्थान देगा। उन्होंने आगे कहा जब मानव ईश्वर के बारे चिन्तन करने लगता है तो वह ईश्वरीय शांति को पाने के पथ पर अग्रसर होता है।


ईश्वर के बारे में विचार करने के लिये यह आवश्यक है कि हम हर दूसरे व्यक्ति के चेहरे में ईश्वर को देखें।


उन्होंने आगे कहा अगर हमारे दिल की गहराई में ईश्वर का वास होगा तब ही हम दूसरे व्यक्ति को एक भाई या एक बहन के रूप में देख सकेंगे।


हम उन्हें साधन नहीं बल्कि एक साध्य के रूप में पहचान पायेंगे । हम उन्हें एक मित्र या भाई के रूप में देख पायेंगे।


हम दुनिया के बारे वैसा ही सोचते हैं जैसा मार्गदर्शन हम हमारी आत्मा से पाते हैं। जिसका दिल खाली है, जहाँ ईश्वर के लिये जगह नहीं है वह तो दुनिया की सभी वस्तुओं की पहचान नहीं ही कर पायेगा।


संत पापा ने यह स्वीकार किया कि कई बार मानव का चेहरा पाप और बुराई के कारण इतना विकृत हो जाता है कि उसमें ईश्वरीय आभा को पहचान पाना कठिन हो जाता है।


ऐसे समय में यह और भी ज़रूरी है कि मानव उस स्वर्गिक पिता के चेहरे को पहचाने जो सबका पिता है। तब व्यक्ति ईश्वर को जानेगा और उसे पहचानेगा।


संत पापा ने कहा कि जिस ईश्वरीय चेहरे की हम तलाश करते हैं माता मरिया के द्वारा मानव बन कर हमारे बीच प्रकट हुआ है। सत्य तो यह है कि सबसे पहले ईश्वर के मानव रूप को पहचानने वाली माता मरिया ही हैं।








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