2010-04-10 20:42:07

ईसाइयों और दलितों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया


नई दिल्ली,10 अप्रैल, 2010 शनिवार (उकान) ईसाइयों और दलितों ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का स्वागत किया है जिसके अंतर्गत उच्च जाति के उन 26 लोगों सजा सुनायी गयी है जिन्होंने सन् 1997 ईस्वी में दलितों क हत्या कर दी थी।
सजा सुनाये जाने पर अपनी टिप्पणी करते हुए नैशलन इंटग्रेशन कौंसिल के सदस्य जोन दयाल ने कहा है कि भारतीय न्यायिक प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ती है पर न्याय सटीक करती है।
उन्होंने यह भी कहा कि उच्च जाति के लोगों को सजा देना ऐसे लोगों के लिये एक ‘कड़वा संदेश’ है जो दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों पर संगठित रूप से हिंसात्मक हमले करते रहे हैं।
कैथोलिक बिशप्स कॉन्फेरेन्स के प्रवक्ता फादर बाबू जोसेफ ने कहा कि ‘अंततः 13 सालों के बाद इस काण्ड में दलितों को न्याय मिला है’।
विदित हो कि बिहार में उच्च जाति के लोगों की एक प्राइवेट आर्मी रणवीर सेना के सदस्यों ने एक जमीन के विवाद पर 1 दिसंबर सन् 1997 को 58 लोगों को मौत के घाट उतार डाला था।
मरने वालों में 27महिलायें 10 बच्चा शामिल थे। पुलिस ने इस घटना की रिपोर्ट दर्ज़ करायी थी। 11 साल तक इसकी सुनवाई चली। बिहार की राजधानी पटना न्यायालय ने 31 मार्च को अंतिम सुनवाई की और उनमें से 16 को मृत्यु दंड की सजायी सुनायी और 10 को आजीवन कारावास की सजा।
19 लोगों को न्यायालय ने सबूत के अभाव में बरी कर दिया है। जोन दयाल ने कहा कि वे मृत्यु दंड का विरोध करते हैं पर यदि कोर्ट ने यह सजा दोषियों के लिये सुनायी है तो यह न्यायपूर्ण है और उचित है।
उन्होंने यह भी कहा कि देश में न्याय की प्रक्रिया बहुत लम्बी है। सरकार को चाहिते को वह एक विशेष न्यायालय की व्यवस्था करे ताकि जातीय हिंसा संबंधी मामलों पर जल्द ही न्याय मिल सके।
उन्होंने इस बात के खेद जताया कि दलितों के न्याय प्राप्त करने मे सदा ही विलम्ब होती है और कई बार धनी अपने धन और दल-बल का प्रयोग कर न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
राष्ट्रीय अपराध शाखा की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में ही उच्च जाति के विरुद्ध सन् 2008 में 2,786 केस दायर किये गये थे पर अभी तक उन पर फैसला नहीं सुनाया गया है।








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