ईस्टर ख्रीस्तीय धर्म का एक प्राचीनतम महापर्व है। येसु मसीह के कब्र में से पुनः जी
उठने की खुशी में मनायेजानेवाले इस महापर्व का आधार है येसु ख्रीस्त के पुनःरुत्थान और
नवजीवन में विश्वास। यह जीवन का महोत्सव है, यह रात्रि के काले अन्धकार को पार कर भोर
के प्रकाश में प्रवेश करने का महापर्व है। मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेश करने का
महापर्व है। वसन्त ऋतु के समान यह नवारम्भ एवं नवोदय का महापर्व है।
ईस्टर महापर्व
के साथ अनेक लोकप्रिय परम्पराएँ जुड़ी हुई हैं। मिस्र देश की दासता से मुक्त होने के
उपलक्ष्य में यहूदियों ने इसे पर्व घोषित किया था जो आज भी मार्च अप्रैल के बीच पड़ता
है। यहूदियों के पास्का पर्व के दौरान ही लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व येसु पकड़वाये गये
थे तथा आततायियों द्वारा क्रूस पर चढ़ाये गये थे। क्रूस पर चढ़ाये जाने के तीसरे दिन
येसु ख्रीस्त पुनः जी उठे और इसी दिन नया पास्का आरम्भ हो गया क्योंकि अधिकांश आरम्भिक
ख्रीस्तीय यहूदी धर्म से आये थे। पूर्वी देशों में इसी समय वसन्त ऋतु की देवी का त्यौहार
मनाया जाता है इसलिये आरम्भिक ख्रीस्तीयों ने इसे नवप्रस्फुटित जीवन या ईस्टर का नाम
दे दिया।
ईस्टर रविवार के पूर्व सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण की धर्मविधि
सम्पन्न की जाती है तथा असंख्य मोमबत्तियाँ जलाकर विश्व के उद्धारकर्त्ता येसु मसीह में
अपने विश्वास की अभिव्यक्ति की जाती है। यही कारण है कि ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियाँ
अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में इन्हें बाँटना एक प्रचलित परम्परा है। साथ ही रंगे
हुए अण्डे या चॉकलेट के बने अण्डे बच्चों में बाँटना ईस्टर की लोकप्रिय परम्परा का अंग
बन गया है। वस्तुतः अण्डा जीवन का प्रतीक है, इसके कठोर और सख्त छिलके को तोड़कर चूज़ा
बाहर निकलता है इसीलिये आरम्भिक ख्रीस्तीयों द्वारा अण्डे को बन्द कब्र से बाहर निकलकर
आनेवाले प्रभु का प्रतीक मान लिया गया। ईस्टर का एक और लोकप्रिय प्रतीक है खरगोश। सच
तो यह है कि खरगोश में जनन क्षमता असाधारण होती है इसीलिये इसे जीवन और वसन्त ऋतु का
प्रतीक मान लिया गया है। देश, काल और वातावरण के अनुकूल यद्यपि विभिन्न देशों में लोग
अपनी अपनी परम्पराओं और रुचि के अनुसार ईस्टर या पास्का मनाते हैं तथापि आनन्द और आशा
का भाव विश्वव्यापी रहता है।