उड़ीसाः ख्रीस्तीयों की शहादत पर कलीसियाई आयोग का अध्ययन
भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने एक आयोग की रचना की है जिसका कार्य उड़ीसा के
कंधामाल ज़िले में हुई ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा की घटनाओं का जायज़ा लेना तथा यह तय करना
है कि हिंसा के शिकार ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को विश्वास के ख़ातिर शहीद ख्रीस्तीय
धर्मानुयायी माना जा सकता है अथवा नहीं।
भूबनेश्वर के काथलिक महाधर्माध्यक्ष
राफायल चीनत ने एशिया समाचार को बताया कि उड़ीसा के पुरोहितों की समिति ख्रीस्तीय समुदाय
पर ढाई गई हिंसा की सच्चाई को प्रकाश में लाना चाहती है।
सन् 2008 में ख्रीस्तीय
विरोधी हिंसा भड़की थी जिससे केवल लोकधर्मी ही नहीं अपितु पुरोहित एवं धर्मबहनें भी प्रभावित
हुई थीं। धर्मान्तरण का झूठा आरोप लगाकर गिरजाघरों एवं ख्रीस्तीय संस्थाओं एवं आवासों
को आग के हवाले कर दिया गया था तथा ख्रीस्तीयों को बलात उनके घरों से निकाल कर अन्यत्र
जाने पर बाध्य किया गया था। हिन्दु धर्म अपनाने के लिये भी उन्हें मौत की धमकियाँ दी
गई थीं।
महाधर्माध्यक्ष चीनत के अनुसार उड़ीसा के कई पुरोहित इस बात पर सहमत
हैं कि पीड़ित काथलिकों को शहीद माना जाये। उनका कहना है कि धर्म ही चरमपंथियों की हिंसा
का आधार नहीं था बल्कि इसमें राजनैतिक एवं आर्थिक प्रश्न जुड़े हुए थे। उदाहरणार्थ हिन्दु
चरमपंथी ख्रीस्तीयों से उनके घर एवं भूमि छीनना चाहते थे। उन्होंने कहा कि केवल काथलिक
ही नहीं अपितु अन्य ख्रीस्तीय सम्प्रदाय के अनुयायी एवं पादरी भी हिंसा के शिकार बनाये
गये थे।
महाधर्माध्यक्ष चीनत ने बताया कि उक्त आयोग अपने अध्ययन के प्रथम चरण
में है जो गवाहों के बयानों एवं साक्ष्यों को एकत्र कर रहा है ताकि यह तय किया जा सके
कि किसे शहीद कहा जा सकता है।
महाधर्माध्यक्ष महोदय ने कहा, "खेदवश यह मानना
पड़ता है कि हमारे ज़िले में शांति अभी भी एक दूरगामी सपना है।" उन्होंने कहा, "पवित्र
शुक्रवार को ख्रीस्त की क्रूस पर मृत्यु के सदृश, हमारे लोगों का कलवारी आरोहण जारी है,
वे अभी भी पीड़ित हैं।"