केरल के दो धर्माध्यक्षों ने राज्य शराब-नीति का विरोध किया
कालीकट, 27 मार्च, 2010 शनिवार (उकान) केरल के दो धर्माध्यक्षों ने राज्य की शराब नीति
के विरोध में 26 मार्च को आयुक्त कार्यालय के समक्ष धरना दिया। इस अवसर पर बोलते
हुए थमारासेरी के धर्माध्यक्ष पौल चित्तीलापिल्ली ने कहा कि ‘नशापान’ राज्य के लिये गंभीर
मुद्दा है। उन्होंने यह भी कहा कि नशापान से मुक्ति के लिये बनी केरल धर्माध्यक्षीय
समिति ने शराब नीति का विरोध किया है क्योंकि नशा से न केवल ईसाइयों का जीवन नष्ट होता
है पर पूरे समाज का वातावरण खराब हो जाता है, परिवार टूटते हैं और कई दुर्घटनायें होतीं
हैं। फादर चन्दी कुरिसुमुत्तिल ने बताया कि केरल ही एक ऐसा राज्य है जहाँ सबसे ज्यादा
शराब की खपत होती है। उन्होंने बताया कि क्रिसमस के समय 279 लाख रुयये की शराब बेची
गयी। समाज सेवा फादर चन्दी ने इस बात की जानकारी दी कि केरल की कुल आबादी का 19 प्रतिशत
ईसाइयों की है और नशापान में वे सभी अन्य समुदायों से आगे हैं। विदित हो कि केरल अपने
सालाना बजट में 77 अरब रुपये शराब पर खर्च करता है और 55 अरब रुपया चावल पर। शराब निषेध
अभियान के अध्यक्ष फादर तोमस थाइथोट्टम न कहा कि वे नशापान के विरोध में अपना अभियान
तेज करेंगे ताकि बच्चों को नशापान के कुप्रभाव से बचाया जा सके। उन्होंने सरकार की
उस नीति का विरोध किया है जिसके अंतर्गत सरकार ने यह निर्णय लिया था कि बेकरी या रोटी
की दुकान के द्वारा उन नशापानों को लोगों के लिये उपलब्ध कराना जिनमें नशा की मात्रा
5 प्रतिशत है। फादर थोमस ने यह बताया कि अंतरराष्ट्रीय नशीली पेय का व्यापार करनेवाली
कम्पनियों ने भारत और चीन को अपने संभवित बड़े बाज़ार के रूप में चिन्हित किया है।