संतों के आदर में परम्परागत शोभा यात्रा में हज़ारों शामिल
गोवा, 24 मार्च, 2010 बुधवार (उकान) गोवा के वेल्हा के संत अद्रेयस चर्च में हज़ारों
लोगों ने संतों के आदर में परम्परागत शोभा यात्रा निकाली।
पल्ली पुरोहित
फादर राउल कोलाको के अनुसार चालीसे काल के पाँचवे सोमवार को प्रत्येक वर्ष संतों के आदर
में एक शोभा यात्रा निकाली जाती है और संतों के जीवन पर मनन-चिन्तन करते हैं।
फादर
कोलाको ने बताया कि कुछ वर्षों पहले इस दिन सिर्फ़ मेल-मिलाप संस्कार ग्रहण करने का रिवाज़
था पर अब यह एक विशेष उत्सव का रूप ले लिया है। पूरे गोवा के विभिन्न भागों से लोग इसमें
सहभागी होते हैं।
पल्ली पुरोहित ने समारोह के बारे में बताते हुए कहा कि पहले
इस दिन 65 संतों की मूर्तियों को ढोने की परंपरा थी पर अब इस वर्ष सिर्फ़ 30 संतों की
मूर्त्तियों के साथ जुलूस निकाला गया। इस वर्ष धन्य जोसेफ़ वाज़ की मूर्ति को भी जुलूस
में शामिल किया गया था।
फादर कोलाको ने उकान समाचार को बताया कि मूर्त्तियों
के साथ जुलूस निकालने की परंपरा सतरहवीं शताब्दी की है जब फ्रांसिस्कन पुरोहित इस तरह
की धार्मिक यात्रा का आयोजन किया करते थे ताकि लोग संतों से प्रेरणा प्राप्त करें और
अपना आध्यात्मिक एवं नैतिक जीवन सुदृढ करें । उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी में
स्थानीय ख्रीस्तीय संतों, शहीदों, राजाओं और रानियों की मूर्त्तियों को सिंगारते और इसे
ढोया करते थे। इतिहास के अनुसार सन् 1835 ईस्वी में पोम्बाल के मारक्विस ने इस प्रकार
की शोभा यात्रा पर रोक लगा दी थी जिससे कई मूर्त्तियाँ रख-रखाव के अभाव में नष्ट हो गये
और कई श्रृंगार के परिधान में खो गये या नष्ट हो गये। बाद में सन् 1868 इस्वी में
इस शोभा-यात्रा निकालने की परंपरा को फिर से शुरु किया गया। ज्ञात हो कि संतों की मूर्त्तियों
के साथ जुलूस निकालने की परंपरा सिर्फ़ इटली और भारत के गोवा में ही जीवित है।