रोम, 8 मार्च, 2010 सोमवार (ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है कि ईश्वर की
दयालुता अपार है पर हमें ईश्वरीय प्रेम का अनुभव करने का अवसर नहीं गँवाना चाहिये।
संत
पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने रविवार 7 मार्च को रोम में अवस्थित कोल्ले
सलारिया के संत ज्योहन्नी देल्ला क्रोचे पल्ली में मिस्सा-बलिदान अर्पित किया।
संत
पापा ने कहा कि चालीसा काल हमें आमंत्रित करता है कि हम सुसमाचार की बातों पर विचार करें,
उसके अनुसार जीवन बितायें और अपने जीवन को नया बनायें।
उन्होंने कहा कि हम चालीसा
काल में भक्तिपूर्वक प्रार्थना करें और दूसरों के साथ सह्रदयता के साथ पेश आयें। संत
पापा ने इस बात को बल देकर बताया कि ईश्वर चाहते हैं कि हम अपना आचरण बदलें ताकि जीवन
की सच्ची खुशी और मुक्ति प्राप्त कर सकें।
आज ज़रूरत है कि हम ईश्वर की वाणी
को ध्यान से सुनें और ईश्वर से पूछें की हमें अपने जीवन को किस तरह से नया बनाना है।
संत पापा ने अपने प्रवचन में संत लूकस के सुसमाचार में वर्णित गूलर पेड़ के दृष्टांत
का हवाला देते हुए कहा कि फल देने के लिये व्यक्ति को चाहिये कि वह ईश्वर की ओर लौटे,
ईश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करे और तब ही वह उत्तम फल ला सकता है।
सुसमाचार
के दूसरे पहलु की पर अपना चिन्तन प्रस्तुत करते हुए संत पापा ने कहा कि ईश्वर दयालु है
और अति धैर्यवान है, जो हमारी स्वतंत्रता का सम्मान करता एवं हमारा इन्तज़ार करता है
कि हम अपना जीवन नवीन कर लें।
अतः हमें चाहिये कि हम अपना आंतरिक परिवर्तन कर
लें ताकि हम उन कृपाओं से वंचित न रह जायें जिसे ईश्वर हमें देना चाहते हैं।
यदि
हम ईश्वरीय प्रेम को पहचान कर उसकी ओर वापस लौटते हैं तो आध्यात्मिक उदासीनता जैसी कमजोरियों
के शिकार होने से बच सकते हैं।
इस अवसर पर संत पापा ने प्रेरित संत पौल के द्वारा
कुरिंथवासियों को लिखे पत्र की भी याद दिलायी और कहा कि मनपरिवर्तन आवश्यक है।
संत
पापा ने कहा कि परिवर्तन के लिये बपतिस्मा और परमप्रसाद संस्कार ग्रहण करना ही काफी नहीं
है वरन् एक ख्रीस्तीय को चाहिये कि वह ईश्वर के द्वारा दिखाये चिह्नों की पहचान करे और
उसकी इच्छा के अनुसार जीवन बिताये।