दक्षिण अफ्रीका के धर्माध्यक्षों ने कहा है कि उन्हें भी अपना क्रूस उठाना पड़ता है जिसे
वे ढोना नहीं चाहते हैं लेकिन चालीसाकाल यह याद करने का समय है कि ख्रीस्तीय लोग पीपल
औफ होप अर्थात आशा के लोग हैं। दक्षिण अफ्रीका के धर्माध्यक्षों ने सीडस औफ होप शीर्षक
से जारी चालीसाकालीन अपील में मानवीय परिस्थिति के सामने आनेवाली कठिनाईयों पर चिंतन
प्रस्तुत किया है। कहा गया है कि कूस जिसे हमें उठाने को कहा जाता है बहुधा ऐसा प्रतीत
होता है कि हम नहीं चाहते या उठा नहीं सकते। धर्माध्यक्षगण स्वीकार करते हैं कि उनके
जीवन में अपने प्रकार के क्रूस हैं जैसे अकेलापन, निराशा, पुरोहितों और धर्मबहनों की
कमी, धर्मप्रांत को चलाने के लिए धन और अन्य संसाधनों की कमी। धर्माध्यक्षों ने कहा है
कि विश्वासियों को अपने कूस जैसे बुढ़ापा, अकेलेपन, बेरोजगारी, टूटी मित्रता, जीवन का
अर्थ, अभिभावकों का अपने बच्चों के प्रति चिंता तथा कुछ लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ,
असाध्य बीमारी का सामना करना होता है। धर्माध्यक्षों ने कहा है कि इन सब कठिनाईयों के
बावजूद तथा अनचाहे दूःख कष्ट रूपी कूसों के बावजूद ख्रीस्तीय आशा के लोग है। हमारा विश्वास
येसु पर है जो हमें इतना प्यार करते हैं कि हमारे लिए मरने को तैयार थे। यह मित्र येसु
ईश्वर का बेटा हमारा भाई है। उन्होंने अपना क्रूस ढोया और बहुत पीड़ादायक मृत्यु पाई
लेकिन मृतकों में से वे जी उठे और जीवित हैं। हमारी आशा उन्हीं के असीम प्रेम, सतत उपस्थिति
और उनकी शक्ति पर है। धर्माध्यक्षों ने कहा उनकी आशा है कि अपने जीवन में हर एक व्यक्ति
सिरीनी सिमोन जैसे व्यक्ति को पाये जिसने येसु को क्रूस ढोने में सहायता की थी। हम निर्धनों,
गरीबों, बेघर और भूखे लोगों के लिए सिरीनी सिमोन बनें येसु को अपनी सहायता दें उस कलीसिया
के माध्यम से जिसकी उन्होंने स्थापना की थी और जिसके वे शीर्ष हैं।