चालीसाकाल 2010 के लिए संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें के संदेश की प्रकाशना
(सेदोक, वीआर साईट 4 फरवरी) चालीसाकाल 2010 के लिए संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें संदेश
की प्रकाशना वाटिकन द्वारा 4 फरवरी को की गयी। उन्होंने न्याय को अपने संदेश की विषयवस्तु
बनाया है। चालीसाकालीन संदेश का शीर्ष वाक्य रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र से उद्धृत
है- ईश्वर का न्याय येसु में विश्वास के द्वारा प्रकट किया गया है। संत पापा कहते हैं
कि चालीसाकाल के अवसर पर प्रतिवर्ष कलीसिया सुसमाचार की शिक्षा के आलोक में विश्वासियों
को अपने जीवन का ईमानदार अवलोकन करने के लिए आमंत्रित करती है। न्याय शब्द के अर्थ पर
चिंतन प्रस्तुत करते हुए संत पापा कहते हैं सामान्य तौर पर न्याय का अर्थ हर व्यक्ति
को उसका हक देना है लेकिन पूर्ण जीवन जीने के लिए इससे कहीं अधिक आंतरिक बात की जरूरत
है कि न्याय को केवल उपहार के रूप में दिया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि मानव उस प्रेम
से जीता है जिसे केवल ईश्वर दे सकते हैं क्योंकि उन्होंने मानव की सृष्टि अपने सदृश की
है। संत पापा कहते हैं कि अन्याय बुराई का फल है इसकी जड़े केवल बाह्य रूप से नहीं हैं
लेकिन इसका मूल मानव ह्दय में है जहाँ इसके बीज बुराई के साथ रहस्यात्मक तरीके से सहयोग
करने में पाये जाते हैं। वास्तव में मानव एक गहन प्रभाव के द्वारा कमजोर हो जाता है जो
दूसरों के साथ सामुदायिकता की भावना में प्रवेश करने की उसकी क्षमता को कम करती है। न्याय
पर कहते हुए संत पापा कहते हैं कि यह विषय इस्राएल के विवेक के केन्द्र में है जिसका
निकट संबध ईश्वर पर विश्वास और पड़ोसी के प्रति न्याय में है। यह शब्द वास्तव में एक
ओर इस्राएल के ईश्वर की इच्छा को पूरी तरह स्वीकार करने में तथा दूसरी ओर पड़ोसी के साथ
विशेष रूप से निर्धनों, अजनबियों, अनाथों और विधवाओं के साथ समता के संबंध को व्यक्त
करता है। संत पापा कहते हैं कि दोनों अर्थ जुडे हुए है क्योंकि इस्राएलियों के लिए निर्धनों
को देना और कुछ दूसरा नहीं लेकिन जो ईश्वर को देय है उसे देना है जिन्होंने अपने लोगों
पर तरस खाई। अंततः संत पापा कहते हैं कि ख्रीस्तीय शुभ संदेश न्याय के लिए मानव की तृष्णा
का सकारात्मक प्रत्युत्तर देता है जैसा कि संत पौलुस रोमियों को लिखे पत्र में यह कहते
हुए पुष्टि करते हैं- संहिता के अतिरिक्त भी ईश्वर का न्याय प्रकट किया गया है... ईश्वर
का न्याय प्रकट किया गया है जो येसु में विश्वास करते हैं। इसलिए ख्रीस्तीयों को न्यायपूर्ण
समाज की रचना करने के लिए बुलाया जाता है। वे मनुष्य को प्रदत्त मर्य़ादा के अनुरूप जीवन
बितायें जहाँ न्याय को प्रेम द्वारा बल मिलता है।