2010-01-13 13:22:40

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश


रोम, 13 जनवरी, 2010 (सेदोक) । बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में संबोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहाः-

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में मध्य युगीन ईसाई संस्कृति के बारे में विचार करना जारी रखते हुए, धर्मसंघों के द्वारा चलाये गये दो ऐसे सुधार आंदोलन की चर्चा करें जिन्होंने चर्च के नवीनीकरण में अपना योगदान दिया।

ईसाई धर्म के इतिहास में संतों ने कलीसियाई जीवन के नवीनीकरण में अपना विशिष्ट योगदान दिया है।

13वीं सदी में संत फ्रांसिस और दोमिनिक चर्च के नवीनीकरण के लिये जो आंदोलन चलाये उससे कलीसिया की अनेक महत्त्वपूर्ण ज़रूरतें पूरी हो सकीं। इस समय फ्रांसिस्कन और दोमिनिकन धर्मसमाज के सदस्यों ने जिस निर्धनता को गले लगाया वह ' कथारों ' की निर्धनता से भिन्न था।

उनकी जो निर्धनता थी उसकी नींव दृश्यमान काथलिक कलीसिया से जुड़ी हुई थी और यह कलीसिया के सृष्टि को बेहतर बनाने संबंधी विचारों के अनुरूप थी। दोनों धर्मसमाज के पुरोहितों और प्रचारकों ने सृष्टि संबंधी बातों का उपदेश दिया और उन्हें इसमें बहुत सफलता भी मिली।

इस युग के कई लोगों ने उनके धर्मसमाज के ' थर्ड ऑर्डर ' में प्रवेश किया। उन्होंने घूम-घूमकर उपदेश देने का तरीका अपनाया था। इससे कई लोगों का मनपरिवर्तन हुआ और कलीसिया और समाज का आध्यात्मिक नवीनीकरण हुआ।

इतना ही नहीं उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षण के कार्य भी किये। उन्होंने इस बात को लोगों को बताने का प्रयास किया कि विवेक और विश्वास के बीच कैसे सामंजस्य रखा जाना चाहिये। उन्होंने पाण्डित्यपूर्ण धर्मज्ञान को सरल बनाने में भी अपना योगदान दिया।

उनके अच्छे उदाहरण और सुसमाचार पर आधारित जीवन हमें प्रेरित करे ताकि हम भी सुसमाचार का साक्ष्य दे सकें और अधिक-से-अधिक लोगों को ईश्वर के करीब ला सकें ।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने डेनमार्क ऑस्ट्रेलिया अमेरिका और देश-विदेश से आये तमाम तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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