2010-01-11 12:55:47

वाटिकन सिटीः देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार दस जनवरी को सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्त समुदाय को इस प्रकार सम्बोधित कियाः

“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
आज प्रातः सिस्टीन प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पण के दौरान मैंने कुछ नवजात शिशुओं को बपतिस्मा संस्कार प्रदान किया। यह प्रथा प्रभु के बपतिस्मा से सम्बन्धित है जिससे ख्रीस्तजयन्ती का धर्मविधिक काल समाप्त होता है।

प्रभु का बपतिस्मा सुचारू रूप से ख्रीस्तजयन्ती समारोहों के सार्वभौमिक भाव को अभिव्यक्त करता है जिसमें, ईश्वर के एकलौते पुत्र द्वारा मानवजाति के बीच आगमन के कारण, "ईश्वर की सन्तान" बनने से सम्बन्धित विषय का तत्व सर्वोपरि रहता है। वे मानव इसलिये बने कि हम ईश्वर की सन्तान बन सकें। ईश्वर ने जन्म लिया ताकि हम पुनः जन्म ले सकें।

ये संकल्पनाएँ ख्रीस्तजयन्ती की धर्मविधि में अनवरत प्रतिध्वनित होती रहती तथा हमारे चिन्तन एवं हमारी आशा का महान कारण बनती हैं। इस स्थल पर, गलातियों को लिखे सन्त पौल के शब्दों पर हम विचार करें: "समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधीन रहे, जिससे वह संहिता के अधीन रहनेवालों को छुड़ा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र बन जायें"(गलातियों 4,4-5); फिर सन्त योहन अपने सुसमाचार की प्रस्तावना में लिखते हैं: "जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया"(योहन 1,12)। हमारे "दूसरे जीवन" का यह आश्चर्यजनक रहस्य - मानव प्राणी का "ऊपर" से यानि ईश्वर से पुनर्जन्म (योहन 3,1-8)- बपतिस्मा संस्कार में मूर्त रूप लेता तथा उसी में समाहित रहता है।"

सन्त पापा ने आगे कहाः .......... "इस संस्कार से मनुष्य वास्तव में पुत्र – ईश्वर का पुत्र बन जाता है। उस क्षण से, उसके जीवन का उद्देश्य, स्वतंत्र एवं सचेत ढंग से, उस लक्ष्य की प्राप्ति बन जाता है जो आरम्भ से ही मनुष्य की नियति थी एवं अभी भी है। "वह बनो जो तुम हो"—ईश कृपा से मुक्ति पाने वाले मानव व्यक्ति के लिये यह मूलभूत शैक्षिक सिद्धान्त बन जाता है। मानव विकास के साथ इस प्रकार के सिद्धान्त की कई अनुरूपताएँ हैं जहाँ माता पिता एवं सन्तान के बीच विद्यमान सम्बन्ध को, अलगाव एवं संकट, पूर्ण निर्भरता एवं सन्तान होने की चेतना, जीवन के वरदान की पहचान एवं परिपक्वता तथा जीवन समर्पित करने की क्षमता से गुज़रना पड़ता है। बपतिस्मा द्वारा नवजीवन प्राप्त कर ख्रीस्तीय धर्मानुयायी भी विश्वास सम्बन्धी अपनी तीर्थयात्रा में विकास आरम्भ करता है जो, उसे सजग रहते हुए, ईश्वर को "अब्बा और पिता" पुकारने, कृतज्ञता से भरे हृदय के साथ धन्यवाद ज्ञापित करने तथा ईश सन्तान होने के उल्लास में जीवन यापन के लिये प्रेरित करती है।"

उन्होंने कहाः…… "बपतिस्मा से समाज के लिये एक आदर्श भी प्रस्फुटित होता है, और वह है भाइयों का समाज। भ्रातृत्व की स्थापना किसी विचारधारा के आधार पर नहीं की जा सकती न ही वह किसी सत्ता के आदेश का फल हो सकती है। एकमात्र स्वर्गिक पिता की सन्तान होने की गहन चेतना एवं विनम्रता के द्वारा ही हम एक दूसरे को, भाई के रूप में पहचानते हैं। ख्रीस्तीय धर्मानुयायी होने के नाते तथा बपतिस्मा संस्कार के समय पवित्रआत्मा का वरदान पाने के कारण हमें यह वरदान मिला है तथा हमारा कर्त्तव्य भी है कि हम ईश सन्तान एवं एक दूसरे के भाई के सदृश जियें तथा, नवीन मानवता का ख़मीर बनकर, शान्ति एवं आशा में एकप्राण एवं समृद्ध बनें। इस में यह चेतना हमारी मददगार सिद्ध होगी कि स्वर्ग में एक पिता के अतिरिक्त एक माता भी है और वह है माता कलीसिया जिसका चिरस्थाई आदर्श हैं कुँवारी मरियम। अभी अभी बपतिस्मा प्राप्त बच्चों एवं उनके परिवारों को हम उन्हीं के सिपुर्द करते हैं और सभी के लिये प्रतिदिन ऊपर से, ईश प्रेम के द्वारा, पुनः जन्म लेने के आनन्द की याचना करते हैं क्योंकि इसी के द्वारा हम ईश्वर की सन्तान एवं आपस में भाई भाई बनते हैं।"

इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया --------------------------------------------------------------

देवदूत प्रार्थना के बाद सन्त पापा ने इटली में आप्रवासियों की दयनीय स्थिति का हवाला देते हुए इस तथ्य पर बल दिया कि आप्रवासी भी मानव प्राणी हैं और इस कारण उनकी प्रतिष्ठा का सम्मान अनिवार्य है। उन्होंने कहाः .............. "दो बातों ने मेरा ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया है। पहला आप्रवासियों का प्रकरण है जो विभिन्न देशों में बेहतर जीवन की खोज कर रहे हैं और विभिन्न कारणों से इन देशों को उनकी आवश्यकता भी है। फिर विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में हमलों एवं कभी कभी हिंसक आक्रमण के शिकार बनाये जा रहे ख्रीस्तीयों का प्रकरण।








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