2010-01-01 10:22:38

वाटिकन सिटीः विश्व शान्ति दिवस हेतु बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश में पर्यावरण की सुरक्षा का आह्वान


सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें कहते हैं कि पर्यावरण का ह्रास एक गम्भीर नैतिक समस्या है जो शान्ति एवं मानव जीवन पर बना एक महान ख़तरा है।

पहली जनवरी को काथलिक कलीसिया विश्व शान्ति दिवस मनाती है। विश्व शान्ति दिवस सन् 2010 के लिये, 15 दिसम्बर को प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें कहते हैं, "अपने आस पास जो कुछ भी हो रहा है उसके प्रति हम उदासीन नहीं रह सकते क्योंकि धरती के किसी एक भाग का ह्रास हम सभी को प्रभावित करता है।"

सन्त पापा ने कहा कि सरकारी नीतियाँ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गतिविधियाँ तथा व्यक्तियों का दिन ब दिन आचार व्यवहार सबकुछ का पर्यावरण पर असर पड़ता है। आज जो कुछ लोग कर रहे हैं उसका भविष्य पर दुष्परिणाम तो होगा ही जबकि प्रदूषण एवं पर्यावरण के शोषण के नकारात्मक प्रभाव अभी ही देखे जा रहे हैं।

उन्होंने प्रश्न किया, "क्या हम जलवायु परिवर्तन, निर्जनीकरण, विशाल कृषि क्षेत्रों में उत्पादकता की क्षति एवं ह्रास, नदियों एवं जलप्रणालों के प्रदूषण, जैव विविधता का लोप, प्राकृतिक प्रकोपों में वृद्धि तथा भूमध्यवर्ती एवं उष्णकटीबन्धी क्षेत्रों के वननाशन के प्रति उदासीन रह सकते हैं?" उन्होंने कहा कि पहले ही से विश्व, पर्यावरण के ह्रास के परिणामस्वरूप जन्में शरणार्थियों के, कटु सत्य का सामना कर रहा है। अपने प्राकृतिक वास के विनाश के कारण लोग खाद्य एवं जल की खोज में एक जगह से दूसरी जगह आप्रवास के लिये बाध्य हैं।

"यह अधिकाधिक स्पष्ट हो रहा है कि पर्यावरण के ह्रास का प्रश्न हमें अपनी उपभोक्तावादी एवं उत्पादन सम्बन्धी जीवन शैली के पुनरावलोकन की चुनौती दे रहा है। ऐसी जीवन शैली जो प्रायः सामाजिक, पर्यावरणीय एवं आर्थिक दृष्टि से भी धारणीय नहीं है।"

इस बात की चेतावनी देते हुए कि प्राकृतिक संसाधनों की उपलभ्यता का प्रश्न लोगों में झगड़ों एवं युद्ध का कारण भी है, सन्त पापा ने कहा, कि इसीलिये विश्व शान्ति के निर्माण हेतु सृष्टि की रक्षा प्रत्येक का अपरिहार्य दायित्व है। यह एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना नवीकृत एवं संयुक्त रूप से किया जाना नितान्त आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ियों के हाथ एक बेहतर विश्व को हस्तान्तरित किया जा सके।

सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश में कहा गया, "मानवजाति को गहन सांस्कृतिक नवीनीकरण की आवश्यकता है; उसके द्वारा उन मूल्यों की पुनर्खोज की जाना आवश्यक है जो सबके लिये उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु ठोस आधार सिद्ध हों।"

उन्होंने लिखा, "हमारे वर्तमान संकट- चाहे वे अर्थ व्यवस्था अथवा खाद्य, पर्यावरण सम्बन्धी या फिर सामाजिक ही क्यों न हों- अन्ततः नैतिक संकट हैं और सभी एक दूसरे से जुड़े हैं।"

इन समस्याओं के समाधान हेतु लोगों को एकजुट होकर कार्य करना होगा तथा अपने व्यक्तिगत कृत्यों की ज़िम्मेदारी वहन करनी होगी। उन्हें संयम, मित्याचार एवं एकात्मता से परिपूर्ण जीवन शैली अपनानी होगी।

जब बाईबिल ने कहा कि ईश्वर ने स्त्री एवं पुरुष को अपने ही प्रतिरूप में सृजित किया तथा उन्हें धरती पर स्वामित्व सौंपा तो उसका अर्थ यह था कि ईश्वर ने मानव को सृष्टि पर स्वामित्व सौंपा ताकि अपनी ज़रूरतों के लिये वह उसके फलों को ग्रहण करे तथा भावी पीढ़ियों के लिये उसके समृद्ध संसाधनों की रक्षा करे। दुर्भाग्यवश यह कहना पड़ता है कि सृष्टि के प्रति कुछ लोगों के ग़ैरज़िम्मेदाराना व्यवहार के कारण धरती के बहुत से लोग कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

सन्त पापा ने कहा कि चूँकि पर्यावरण का संकट विश्वव्यापी है उसका समाधान भी अन्य क्षेत्रों में जीवन यापन करनेवालों तथा आनेवाली पीढ़ियों के प्रति ज़िम्मेदारी एवं वैश्विक एकात्मता की भावना में ढूँढ़ा जाना चाहिये। पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति कलीसिया का समर्पण, उसके इस धार्मिक दायित्व से प्रस्फुटित होता है कि धरती, जल एवं वायु सृष्टिकर्त्ता ईश्वर द्वारा सबके लिये दिया गया वरदान है। साथ ही, आत्म विनाश के ख़तरे से मानवजाति को बचाना कलीसिया अपना धार्मिक दायित्व मानती है।

सृष्टि सम्बन्धी बाईबिल कथा स्पष्ट करती है कि सृष्टि के निकाय में मानवजाति का अहं एवं विशिष्ट स्थान है इसलिये सृष्टि की रक्षा मानव जीवन एवं मानव प्रतिष्ठा की मांग करती है। प्रकृति की किताब एक और अविभाजित है जिसमें केवल पर्यावरण ही नहीं अपितु व्यक्ति, परिवार एवं सामाजिक नैतिकता भी शामिल है। अस्तु, पर्यावरण के प्रति हमारे कर्त्तव्य मानव व्यक्ति के प्रति कर्त्तव्य से प्रवाहित होते हैं। ख्रीस्तीय पारिस्थितिकी वह है जो मानव व्यक्ति को विशेष स्थान प्रदान करती है, वह हर अवस्था एवं हर चरण में मानव जीवन की अलंघनीयता को मान्यता देती, वह व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं परिवार के अद्वितीय मिशन को मान्यता देती जहाँ व्यक्ति को पड़ोसी एवं प्रकृति के प्रति प्रेम एवं सम्मान की शिक्षा दी जाती है।

"यदि आप शान्ति स्थापित करना चाहते हैं तो सृष्टि की रक्षा करें", इसी अपील के साथ सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें विश्व शान्ति दिवस सन् 2010 के लिये अपना सन्देश समाप्त करते हैं।










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