दलित ईसाइयों और मुसलमानों के समान अधिकार के लिये संसद में बहस
मुम्बई, 19 दिसंबर, 2009। संसद पहली बार दलित ईसाइयों और मुसलमानों को हिन्दु और बौद्ध
दलितो के समान बराबर अधिकार देने के लिये बहस करने पर राजी हो गया है। उस आशय की
जानकारी देते एशिया समाचार ने बताया कि धर्म और भाषाओं के लिये बनी राष्ट्रीय आयोग ने
पहली लोक सभा में इस बात का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने यह भी बताया कि 59 वर्षों
से दलित ईसाइयों और मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया था। समाचार के अऩुसार
पूर्व मुख्य न्याय़धीश ने यह सलाह दी है कि सन् 1950 के संविधान के तीसरे परिच्छेद में
जो अधिकार सिर्फ़ दलितों को दिये गये हैं और बाद में सिक्ख और बौद्ध धर्मावलंबियों के
लिये भी कर दिये हैं उसे परिच्छेद को पूर्णतः हटा दिया जाना चाहिये। उन्होंने यह
भी सलाह दी है कि दलितों के बारे धर्म को आधार बनाकर विचार नहीं किया जाना चाहिये पर
इसे सामाजिक तरीके विचार होना चाहिये। इसी प्रकार की बातें अनुसूचित जनजातियों के लिये
किया जाना चाहिये। भाषा और धर्म के लिये बनी आयोग ने आशा व्यक्त की कि ऐसी व्यवस्था
होने से जो अधिकार दलितों को नागरिक या राजनीतिक मामलों में प्रतिनिधित्व और रोजगार के
संबंध में मिलते हैं वैसे ही दलित इसाईयों और मुसलमानों को भी मिलने लगेंगे। आयोग
ने इस बातो को भी लोकसभा को बताया कि सन् 1959 का संवैधानिक निर्देश संविधान की धारा
14 15 और 16 का भी उल्लंघन करता है। ज्ञात हो इस समस्या को रंगनाथ रिपोर्ट ने पहले
सर्वोच्च न्यायालय को बताया और न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि इस पर विचार किया जाये।
यह भी विदित हो सन् 2000 बिहार उत्तर प्रदेश और आन्ध्रप्रदेश की सरकारों ने पहले ही विधान
सभा में सभी दलितों को समान अधिकार दिये जाने का नियम पारित कर दिया है। पर इस मुद्दे
पर लोकसभा में पहली बार विचार-विमर्श किया जायेगा।