वाटिकन सिटीः देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
श्रोताओ, रविवार 13 दिसम्बर को सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में सन्त पापा से
आशीष प्राप्त करने हेतु शिशु येसु की प्रतिमाओं को लिये बच्चों एवं तीर्थयात्रियों के
साथ देवदूत प्रार्थना के पाठ से पूर्व सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भक्त समुदाय को
इस प्रकार सम्बोधित कियाः
“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, अब हम आगमन के तीसरे
सप्ताह में आ चुके हैं। आज के धर्मविधिक पाठों में हम प्रेरितवर सन्त पौलुस के निमंत्रण
की प्रतिध्वनियों को सुनते हैं: "प्रभु में सदा आनन्द मनाओ, मैं फिर कहता हूँ आनन्द मनाओ
... प्रभु निकट हैं!" (4:4-5 Philippians)। ख्रीस्तजयन्ती महापर्व की ओर हमारे संग चलती
माता कलीसिया, ख्रीस्तीय धर्म के भाव एवं रसास्वादन के, आनन्द की पुनर्खोज हेतु हमारी
मदद करती है, जो सांसारिक आनन्द से बिलकुल भिन्न है।
यह एक अति सुंदर परंपरा
है कि इस रविवार को रोम के बच्चे, गऊशालों में सजाई जानेवाली, बालक येसु की छोटी छोटी
मूर्तियाँ लिये सन्त पापा के पास उनपर आशीष के लिये आते हैं। वास्तव में, मैं कई बच्चों
और युवा लोगों को अपने माता पिता, अध्यापकों और धर्मशिक्षकों के साथ, यहाँ सन्त पेत्रुस
महागिरजाघर के प्राँगण में देख रहा हूँ।
प्रिय दोस्तों, मैं सस्नेह आप सभी का
स्वागत करता तथा यहाँ आने के लिये आप सब के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। मेरे लिए
यह खुशी का कारण है कि आपके परिवारों में अभी भी गऊशाला बनाने की प्रथा जारी है। यद्यपि
यह एक महत्वपूर्ण कृत्य है तथापि इस पारम्परिक कृत्य को दुहराना ही पर्याप्त नहीं है।
आवश्यकता है उस तथ्य को समझने एवं प्रतिदिन जीने की जिसका प्रतिनिधित्व चरनी करती है
और वह है, ख्रीस्त का प्रेम, उनकी विनम्रता, उनकी दीनता।
यही सन्त फ्रांसिस ने
ग्रेच्यो में कियाः उन्होंने ख्रीस्तजन्म के दृश्य को प्रस्तुत किया ताकि उसपर मनन चिन्तन
किया जा सके तथा प्रभु की आराधना की जा सके, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण, उन्होंने चाहा कि
लोग यह जाने कि ईशपुत्र के सन्देश को किस प्रकार बेहतर ढंग से व्यवहार में लाया जा सकता
है। उन ईशपुत्र के सन्देश को जो हमारे प्रति प्रेम के कारण सबकुछ छोड़कर एक नन्हे शिशु
बन गये।" सन्त पापा ने आगे कहाः .......... "बालक येसु की प्रतिमाओं की आशीष
– जैसा कि रोम में कहा जाता है- हमें याद दिलाती है कि चरनी जीवन की पाठशाला है, जहाँ
हम यथार्थ आनन्द के रहस्य की शिक्षा पा सकते हैं। यह हमारे पास बहुत कुछ होने में नहीं
है, किन्तु प्रभु द्वारा प्रेम किये जाने की अनुभूति में है, अपने आप को दूसरों के लिये
उपहार बनाने में है, यह प्रेम करने में है। हम चरनी पर अपनी दृष्टि लगाते हैं: वहाँ मरियम
और योसफ का परिवार कोई सौभाग्यशाली परिवार प्रतीत नहीं होता; महान कठिनाइयों के बीच उन्होंने
अपनी प्रथम सन्तान को पाया था, किन्तु इसके बावजूद वे अपार खुशी से परिपूर्ण थे, क्योंकि
वे एक दूसरे से प्यार करते थे और सबसे महत्वपूर्ण बात कि उनका यह विश्वास सुदृढ़ था
कि उनके इतिहास में ईश्वर कार्यरत थे, ईश्वर जिन्होंने स्वतः को शिशु येसु में प्रकट
किया। और चरवाहे? उनके आन्नद मनाने का क्या कारण हो सकता है? निश्चित रूप से वह नवजात
शिशु उनके निर्धन एवं हाशिये पर पड़े जीवन को तो नहीं बदल डालेगा। किन्तु विश्वास उनकी
मदद करता है कि वे कपड़ों में लपेटे और चरनी में लेटे उस बालक को पहचाने जो, सन्त लूकस
के अनुसार, उन सब मनुष्यों से की गई ईश्वर की प्रतिज्ञा पूर्ण होने का चिन्ह है जिनसे
ईश्वर प्रेम करते हैं।"
उन्होंने आगे कहाः "प्रिय मित्रो, सच्ची खुशी
किसमें है उसे देखने का प्रयास करें: सच्चा आनन्द यह महसूस करने में है कि हमारा व्यक्तिगत
एवं सामुदायिक अस्तित्व एक महान रहस्य से भरा है और यह महान रहस्य है, ईश्वर के प्रेम
का रहस्य। आनन्दित होने के लिये हमें चीज़ों की ज़रूरत नहीं है बल्कि इसके लिये हमें
प्रेम और सच्चाई की ज़रूरत हैः हमें उस ईश्वर की ज़रूरत है जो हमारे निकट है, जो हमारे
दिलों को आनन्दित करता और हमारे हृदय की गहराई में बसी इच्छाओं को पूर्ण करता है। वह
ईश्वर, कुँवारी मरियम से जन्मा तथा येसु में प्रकट हुआ। इसीलिये, वह शिशु जिसे हम गऊशाले
या गुफा में रखते हैं सबकुछ का केन्द्र है, विश्व का प्राण है। हम प्रार्थना करें कि
कुँवारी मरियम की तरह ही प्रत्येक व्यक्ति यथार्थ आनन्द के स्रोत, शिशु बने ईश्वर का
अपने जीवन में स्वागत करे।"
इस प्रकार, सबसे प्रार्थना का अनुरोध करने के बाद,
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ
किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया
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