2009-11-25 13:26:29

आरक्षण के मामले में अल्पसंख्यक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला


चेन्नई, 25 नवम्बर, 2009। आरक्षण धर्म पर आधारित नहीं होना चाहिये क्योंकि भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है।
उक्त बातें तमिनाडू के अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष फादर भिन्सेंट चिन्नादूराई ने उस समय कहीं जब उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्य के मुख्यमंत्री श्री एम. करुणानिधि से मुलाकात की।
उन्होंने कहा कि समाजिक न्याय की स्थापना तब ही हो सकती है जब आरक्षण का आधार जाति हो।
ज्ञात हो कि एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने अपने पाँच सूत्रीय माँगो को लेकर 16 नवम्बर को मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी।
मुख्यमंत्री करुणानिधि ने प्रतिनिधिमंडल को यह आश्वासन दिया है कि वे उन माँगों को पिछडी जाति के लिये बनी आयोग के अध्यक्ष न्यायधीश एम.एस. जनार्दनम को सौप देंगे और उसी के आधार पर कुछ ठोस निर्णय लेंगे।
ज्ञात हो कि इस प्रतिनिधिमंडल में तमिलनाडू धर्माध्यक्षीय समिति के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष पीटर फेरनान्दो, मैलापूर के धर्माध्यक्ष ए.एम चेनप्पा और धर्माध्यक्ष रेमिजियुस शामिल थे।
प्रतिनिधिमंडल ने यह माँग की है कि दलित ईसाइयों को अति पिछडे वर्ग की सूची में रखा जाये।
उन्होंने यह भी बताया कि शिक्षण संस्थान को खोलने के लिये अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र एक थकाउ औपचारिकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले चार साल में किसी को भी अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र नहीं दिया गया।
उन्होंने आगे कहा कि आंध्रप्रदेश ने अल्पसंख्यक आयोग को ही यह अधिकार दे दिया है कि वह यह प्रमाणपत्र दे।
उन्होंने बताया कि शिक्षा विभाग ने उन संस्थाओं से अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र की माँग की जिन्होंने 150 सालों तक राज्य को अपनी सेवायें प्रदान कीं हैं।
प्रतिनिधिमंडल ने इस ओर भी सरकार का ध्यान खींचा कि राज्य सरकार ने उन अल्पसंख्यक ईसाई शिक्षण संस्थानों को कोई अनुदान नहीं दिये है जो 1 जून 1999 के बाद खोले गये हैं।
उनकी माँग थी कि मद्रास उच्च न्यायालय के अनुसार अधिक शिक्षकों की मंजूरी और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति करने की अनुमति दी जाये।








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