2009-11-25 13:16:51

आज्ञाकारिता एक समर्पण है- मौरो पियेचेन्सा





वाटिकन सिटी, 25 नवम्बर, 2009। पुरोहितों की आज्ञाकारिता का व्रत के अनुसार जीना आज के व्यक्तिवादी समाज में एक कठिन कार्य है लेकिन इसका वफ़ादारी से पालन करने से पुरोहितों के जीवन में व्यापक परिवर्त्तन आ सकता है।

उक्त बातें वाटिकन पुरोहितीय समिति के सचिव महाधर्माध्यक्ष मौरो पियेचेन्सा ने उस समय बतायीं जब उन्होंने पुरोहितों को एक पत्र लिखे।

उन्होंने बताया कि हालाँकि इस बात को समझना उस समय और ही कठिन है जब दुनिया स्वायत्त व्यक्तिवादी औऱ सापेक्षवादी होती जा रही है।

महाधर्माध्यक्ष ने इस बात को दुहराया कि आज्ञाकारिता को मानव की मर्यादा के विपरीत और मानव स्वतंत्रता के विरुद्ध भी समझा जाता रहा है पर जो लोग आज्ञाकारिता के आंतरिक अर्थ को समझते हैं उनके लिये ऐसी बात नहीं हैं।

पुरोहितों के लिये यह एक समर्पण है। यह एक संतान का अपने पिता के प्रति सम्मान है।

उन्होंने आगे कहा जैसा कि प्रकृति का नियम लोगों को अनुभव है कि व्यक्ति अपने पिता का चयन नहीं कर सकता है यह हमें एक उपहार के रूप में दिया जाता है हमें चाहिये कि हम अपने पिता को उचित सम्मान दें।

महाधर्माध्यक्ष पिचेन्सा ने आगे कहा कि अगर व्यक्ति इस बात को समझ ले कि उसके पिता के साथ उसका क्या संबंध है और उसे किस तरह से सम्मान देना चाहिये तो वह आज्ञाकारिता को एक बोझ नहीं समझेगा।

और ऐसा होने से उसका जीवन परिवर्तित होगा और वह इस समर्पण को बखूबी निभा पायेगा।

महाधर्माध्यक्ष ने पुरोहितों को प्रोत्साहन देते हुए कहा कि वे माता मरिया की मध्यस्थता से प्रार्थना करें ताकि वे भी माता मरिया के समान कह सकें कि उनके जीवन में ईश्वर की इच्छा पूरी हो।











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