2009-11-21 14:05:31

दलितों के प्रति काँग्रेस पार्टी की ढुलमुल नीति


नयी दिल्ली, 21 नवम्बर, 2009। ईसाई नेताओं ने सत्ताधारी काँग्रेस पार्टी की दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों की माँगो के संबंध में ढुलमुल नीति पर रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि ईसाई नेताओं को केन्द्र को दिया जा रहा समर्थन वापस ले लेना चाहिये।
चेन्नई के मैलापूर के महाधर्माध्यक्ष मलयप्पन चिन्नाप्पा न कहा कि उन्होंने काँग्रेस को सन् 1950 से ही समर्थन दिया है इस आशे मे कि यह पार्टी उनके हितों का ख्याल रखेगी पर ऐसा नहीं हुआ है।
महाधर्माध्यक्ष चिन्नप्पा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब पूरे देश से आये करीब 2 हज़ार ईसाइयों ने दिल्ली में 18 नवम्बर को एक जुलूस निकाला।
उन्होंने सरकार से माँग की है कि वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ईसाई और मुसलिम दलितों को आरक्षण दें। ज्ञात हो कि इस रैली के पहले अनेक धर्माध्यक्षों और मुसलिम नेताओं ने जंतर-मंतर में धरना दिया।
इस धरना का आयोजन ठीक उस समय किया गया जब संसद का शीतकालीन अधिवेशन आरंभ होने वाला था।
ज्ञात हो कि इस धरना और रैली का आयोजन ' नैशनल कौंसिल फॉर दलित क्रिश्चियन ' , अंतर कलीसियाई समित और सीबीसीआई और ' नैशनल कौंसिल ऑफ चर्चेस इन इंडिया ' ने संयुक्त रूप से किया था।
ज्ञात हो कि दलितों को संविधान में सन् 1950 में ही अनुसूचित जाति का दर्ज़ा दिया गया ताकि उनकी प्रगति हो सके पर ईसाई और मुसलमान दलितों को इसका लाभ नहीं मिल सका है।
सरकार का कहना है कि ईसाई और मुसलमानों जाति-प्रथा को नहीं मानते हैं इसीलिये उन्हें अन्य दलितों के समान सुविधायें नहीं मिल रहीं हैँ।
रैली को संबोधित करते हुए महाधर्माध्यक्ष चिन्नप्पा ने कहा कि काँग्रेस की सरकार से उन्हें बहुत उम्मीद थी पर अब तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार का यही रवैया रहा तो अगले चुनाव में उन्हें कुछ दूसरा विकल्प सोचना पड़ेगा।
ज्ञात हो देश में कुल ईसाइयों का 70 प्रतिशत आबादी दलितों की है।








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