बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश 18 नवम्बर,
2009
वाटिकन सिटी, 18 नवम्बर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त
सोलहवें ने संत पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं
में संबोधित किया। उन्होंने कहाः-
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, मध्य युगीन
ईसाई संस्कृति की शिक्षामाला को जारी रखते हुए आज हम उस युग के ख्रीस्तीय विश्वास के
उन प्रभाव पर हम चिन्तन करें जिसने उस समय की वास्तुकला को प्रभावित किया।
आज
हम यूरोप में बने महागिरजाघरों की वास्तुकला पर विचार करें। रोमन साम्रज्य के समय में
जिन महागिरजाघरों का निर्माण हुआ वे अपने आकार-प्रकार और शिल्प कला के लिये आज भी सराहे
जाते हैं।
इस युग में जो येसु मसीह की मूर्तियाँ बनायी गयी हैं उनमें इस बात
को दिखाने का प्रयास है कि येसु पूरी दुनिया के न्यायकर्त्ता हैं और स्वर्गराज्य के द्वार
की कुँजी उन्हीं के पास है।
इस बात को भी बताने का प्रयास किया गया है कि उन्हीं
के द्वारा लोग ईश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।
इतना ही नहीं जो पवित्र
पूजन-विधियों में भक्तिपूर्वक हिस्सा लेते हैं तो हमें इसी जीवन में अनन्त सुख की एक
अनुभूति प्राप्त होगी।
धीरे-धीरे गोथिक वास्तुकला ने रोमन वास्तु कला का स्थान
लिया। इसने भी वास्तुकला की सुन्दरता में चार चाँद लगाये।
अगर हम गोथिक वास्तुकला
पर विचार करेंगे तो हम पायेंगे कि इसमें इस बात को दिखाने का प्रयास किया गया कि लोगों
के ह्रदयों की आकांक्षाओं को कला में समाहित कर ईश्वर तक ऊपर उठाने का प्रयास है।
जब
विश्वास कला के साथ मिल जाता है, विशेष करके पूजन-विधि के साथ तब दृश्य और अदृश्य वस्तुओं
के बीच एक गहरा संबंध बन जाता है।
मध्य युग की दोनों स्थापत्य शैलियाँ इसके प्रत्यक्ष
प्रमाण हैं।इन दोनों कलाओं ने लोगों को ईश्वर के रहस्य को समझने में बहुत मदद दी है।
आज हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे हमें कृपा दें कि हम सुंदरता पर चिन्तन करते हुए
ईश्वर को जान सकें और सर्वशक्तिमान ईश्वर को अधिक प्यार कर सकें।
इतना कहकर
संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों,
पर्यटकों, काथलिक महिलाओं के अन्तरराष्ट्रीय संगठन के सदस्यों और उनके परिवार के सब सदस्यों
पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।