2009-11-04 12:44:18

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
4 नवम्बर, 2009


रोम, 4 नवम्बर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा-

मेरे अतिप्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में हम फिर से उन बातों पर मनन-चिंतन करें जिसकी चर्चा हमने पिछले सप्ताह की थी।

हम मठवासी ईशशास्त्र और स्कोसास्टिक ईशशास्त्र या पांडित्यवादी ईशशास्त्र पर चिंतन करें। आज हम क्लेरभौक्स के संत बेरनार्ड की तुलना अबेलार्ड से करें।

इन दोनों के अनुसार ईशशास्त्र या धर्मज्ञान का अर्थ था - एक ऐसा ज्ञान जो विश्वास को समझने का प्रयास करता हो। इन दोनो धर्मविद्वानों में एक अन्तर था।

संत बेरनार्ड विश्वास पर बल देते थे तो अबेलार्ड ज्ञान या विवेक या समझदारी पर। बेरनार्ड के लिये ईशशास्त्र का लक्ष्य था - ईश्वर का अनुभव करन। उन्होंने लोगों को इस बात के लिये सचेत किया कि वे धर्मज्ञान के कारण घमंडी न बनें और सोचें कि वे विश्वास के रहस्य को आसानी से समझते हैं।

उधर अलेबार्द ने दर्शनशास्त्र या विवेक का उपयोग इसलिये किया ताकि वे ईशशास्त्र को समझ सके। ऐसा करने की प्रक्रिया में उन्होंने पाया कि दूसरे धर्मों में येसु को स्वीकार करने की इच्छा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बेर्नार्ड के ईश्वर को समझने के तरीके में ह्रदय की प्रमुखता है और अबेलार्द में विवेक या ज्ञान की।

फिर भी ये दोनों एक दूसरे के पूरक भी है। यह भी ज्ञात हो कि इन दोनों दृष्टिकोणों में बराबर तनाव होता रहता था। वास्तव तो इसे एक ' लाभकारी तनाव ' या ' स्वस्थ-धार्मिक-चर्चा ' कही जा सकती है।

इसके द्वारा दोनों धर्मविद्वानों ने इस बात का उदाहरण पेश किया कि हम कैसे कलीसिया के समक्ष नम्रतापूर्वक खुले मन से धर्म के रहस्यों केबारे में चर्चा कर सकते हैं।

विश्वास को चाहिये वह दर्शनशास्त्रीय विवेक को स्वीकार करे और थ कलीसिया की यह ज़िम्मेदारी हो कि वह हर हाल में विश्वास के रहस्यों को बचाने के लिये प्रयासरत रहे।
आज जब हम सुसमाचार के गूढ़ रहस्यों को समझने प्रयास कर रहे हैं पिता ईश्वर हमारे विश्वास को मजबूत करे ताकि ईश्वर के प्रेम और सत्य को समझ सकें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने इंगलैंड, डेनमार्क, अमेरिका और अग्रेजी भाषा-भाषियों, विद्यार्थियों, तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की याचना की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया













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