नयी दिल्ली, 31 अक्तूबर, 2009। दलित ईसाइयों को इस बात की आशा मिली है कि उन्हें अन्य
दलितों के जैसे ही समान प्राप्त हो पायेंगे। उक्त बात की जानकारी दलितों पिछड़े वर्ग
और आदिवासियों के लिये बनी समिति के सीबीसीआई में कार्यरत अध्यक्ष फादर कोसमोन आरोक्याराज
ने सीबीसीआई समाचार सूत्रों को दी। उन्होंने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में दिसंबर
महीने में इस बात की सुनवाई होनी है। उन्होंने यह भी जानकारी दी है कि सुप्रीम कोर्ट
ने इस संबंध में सकारात्मक रुख दिखलाया है। फादर कोसमोन ने कहा है कि इस मुद्दे को जीवित
रखने की आवश्यकता है ताकि दलितों को अपना हक मिल सके। उन्होंने यह भी बताया कि इसके
पहले कि सु्प्रीम कोर्ट अपना फ़ैसला सुनाये 18 नवम्बर को दिल्ली में एक धरने का आयोजन
किया जायेगा। और इस अभियान को एनसीसीआई और सीबीसीआई जैसे संगठनों का समर्थन भी प्राप्त
होगा। ज्ञात हो कि संविधान के सन् 1950 की आज्ञा के अनुसार अनुसूचित जाति के अधिकार
सिर्फ उन लोगों को प्राप्त हुए जो हिंदु धर्म छोड़कर सिक्ख या बौद्ध धर्मी हो गये थे।
यह अधिकार दलित ईसाइयों और मुसलमानों को नहीं दिया गया। धर्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों
के लिये बनी राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि इस प्रकार का भेदभाव किया जाना अन्याय है। उन्होंने
यह भी कहा है कि ऐसा होना संविधान की धारा 14, 15 और 25 का भी खुला उल्लंघन है। उन्होंने
माँग की है कि संवैधानिक अनुसूचित जाति आज्ञा 1950 की धारा 3 को समाप्त कर दिया जाना
चाहिये। अल्पसंख्यकों के लिये बनी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी इसका समर्थन किया
है। इस संबंध में सन् 2004 में ही याचिका दायर की गयी थी पर सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम
नहीं उठायें। इसके कारण हज़ारों दलित ईसाई और मुसलमानों को अनेक कठिनाइयों का सामना
करना पड़ रहा है। सीबीसीआई अल्पसंख्यक आयोग के सचिव फादर कोसमोन यह भी बताया कि
इस मुद्दे पर सभी मुख्य राजनीतिक पार्टियाँ एक हो गयीं है। उन्होंने लोगों से अपील
की है कि वे प्रार्थनायें चढ़ायें और आर्थिक रूप से भी मदद करें ताकि दलित ईसाइयों को
अपने अधिकार की प्राप्ति हो सके।