2009-10-28 19:21:36

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
28 अक्तूबर, 2009


रोम, 28 अक्तूबर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा-

मेरे अति प्रिय भाइयों एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में मध्य युग के उन ख्रीस्तीय विचारकों के ईशशास्त्रीय विचारों पर मनन-चिन्तन करें जिन्होंने ग्रेगोरी के सुधारवादी आंदोलन के समय कलीसिया के लिये अपना योगदान दिया।

12वी सदी आध्यात्मिक सास्कृति और राजनीतिक पुनर्जागरण का समय था। ईशशास्त्र या धर्मज्ञान के विद्वान भी इस समय में अनेक चुनौतियों का सामना करने लगे थे जिसका ज़वाब खोजते-खोजते संत थोमस अक्वीनस और बोनावेतुरा जैसे ईशशास्त्री या धर्मविद्वान पैदा हुए।

इस समय में दो प्रकार के ईशशास्त्र का उदय हुआ एक मठवासी ईशशास्त्र और दूसरा स्कोलास्टिक या पांडित्यवादी ईशशास्त्र। मठवासी ईशशास्त्रियों ने बाइबल के शब्दों पर मनन-चिन्तन पर बल दिया।

इसके द्वारा वे चाहते थे कि लोग येसु के जीवन के रहस्यों पर चिंतन करें और इसका आध्यात्मिक लाभ पायें।

पांडित्यवादी धर्मविद्वानों ने विश्वास को उसके श्रोत के अध्ययन और तर्कपूर्ण तरीके से समझाने का प्रयास किया। और इसीलिये इसकी व्याख्या की किताबों में मिलती है।

आज भी विश्वास और विवेक के आपसी गहरे संबंध हमें ऐसी प्रेरणा देते हैं जिससे हमारे दिल में आशा जगती है।

आज हम प्रार्थना करें कि हमारा विश्वास भी हमारी बुद्धि या विवेक को उँजियाला प्रदान करे और इस आलोक में हम सत्य की खोज करने के लिये प्रेरित हो हों और ईश्वर को प्राप्त कर सकें।
.
इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने भारत स्वीडेन नाइजीरिया आयरलैंड इंगलैंड अमेरिका और अग्रेजी भाषा-भाषियों, विद्यार्थियों, तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की याचना की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया











All the contents on this site are copyrighted ©.