दान्स्क, पोलैण्डः यूरोपीय धर्माध्यक्षों द्वारा एकात्मता का आह्वान
पोलैण्ड के दान्स्क नगर में विगत गुरुवार से रविवार तक यूरोपीय काथलिक धर्माध्यक्षीय
सम्मेलनों के संघ की बैठकें हुई जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध की 70 वीं बरसी तथा यूरोप
में एकात्मता के संवर्धन पर विशद चिन्तन किया गया। चार दिनों तक चली इन बैठकों में 29
यूरोपीय देशों के काथलिक धर्माध्यक्षों ने भाग लिया।
"काथलिक सोशल डेज़ फॉर योरोप"
यानि यूरोप के लिये काथलिक सामाजिक दिवस शीर्षक से आयोजित उक्त बैठकें रविवार को भव्य
ख्रीस्तयाग से समाप्त हुई। इसके बाद जारी एक वकतव्य में धर्माध्यक्षों ने महाद्वीप में
एकात्मता के प्रसार हेतु नवीन पहलें आरम्भ करने का प्रण किया। धर्माध्यक्षों ने सम्पूर्ण
महाद्वीप में जनकल्याण को प्रोत्साहन देने के लिये एकात्मता एवं सहायता के सिद्धान्त
को मज़बूत बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने इस तथ्य की पुष्टि कीः
"स्वार्थीं आचरण, उपयोगितावाद एवं भौतिकतावाद के परित्याग एवं आपसी भागीदारी की आवश्यकता
है जैसा कि सामयिक आर्थिक संकट ने स्पष्टतः दर्शाया है।"
उन्होंने कहाः "गर्भ
के आरम्भिक क्षण से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक मानव जीवन के अलंघनीय अधिकारों का सम्मान
किया जाना चाहिये। साथ ही एक पुरुष एवं एक स्त्री के विवाह पर आधारित परिवार को सुरक्षा
एवं समर्थन दिया जाना चाहिये। उन परिस्थितियों की रचना की जानी चाहिये जो अभिभावकों को
अपने बच्चों के लालन पालन में समर्थ बनायें, परिवारिक जीवन में प्रेम को प्रस्फुटित करें
तथा उपयुक्त शिक्षा द्वारा व्यावसायिक जीवन हेतु बच्चों को तैयार करें।
उन्होंने
कहा कि चूँकि एकात्मता हमारा सामान्य भविष्य है इसलिये हमें भय खाने की ज़रूरत नहीं है।
उन्होंने कहाः "यूरोप की एकता कुछ व्यक्तियों का सपना था। यह बहुतों के लिये आशा का स्रोत
बन गया है। आज हमारा कर्त्तव्य यह आश्वासन देना है कि यूरोप वैश्विक एकात्मता के लक्ष्य
की प्राप्ति हेतु प्रयास जारी रखे।
वकतव्य में एकात्मता निर्माण के तीन तरीकों
को रेखांकित किया गयाः पीढ़ियों के बीच एकात्मता, यूरोप के विभिन्न देशों के मध्य एकात्मता
तथा यूरोप एवं शेष विश्व के बीच एकात्मता।
धर्माध्यक्षों ने अपने वकतव्य में
यूरोपीय देशों का भी आह्वान किया कि वे आप्रवास के सामान्य नियम बनायें ताकि प्रत्येक
व्यक्ति की मानव प्रतिष्ठा का सम्मान हो सके।