चेक गणराज्य में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट
सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें चेक गणतंत्र की
तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर सोमवार28 सितम्बर की सन्ध्या पुनः रोम लौट रहे
हैं। इस यात्रा का अन्तिम दिन सन्त पापा ने चेक गणतंत्र एवं केन्द्रीय यूरोप के संरक्षक
सन्त वेनचेस्लाव के शहादत स्थल स्तारा बोलेस्लाव में व्यतीत किया। स्तारा बोलेस्लाव में
सम्पन्न समारोहों की रिपोर्ट से पूर्व हम श्रोताओ का ध्यान रविवार को ब्रुने एवं राजधानी
प्राग में सम्पन्न समारोहों पर आकर्षित करना चाहेंगे।
रविवार को सन्त पापा
बेनेडिक्ट ने इस बात पर बल दिया कि आप्रवास द्वारा यूरोप की ओर विश्व के अन्य धर्मों
एवं संस्कृतियों के आगमन को दृष्टिगत रख, केवल भूतपूर्व साम्यवादी देश ही नहीं अपितु,
सम्पूर्ण यूरोप को अपनी ख्रीस्तीय जड़ों तक लौटना होगा। रविवार को, ब्रुने नगर के हवाई
अड्डे पर आयोजित ख्रीस्तयाग, वास्तव में, धर्म के प्रति उदासीन चेक गणतंत्र में हज़ारों
देश वासियों एवं पड़ोसी देशों के तीर्थयात्रियों के लिये हर्षोंल्लास का दिन सिद्ध हुआ
जो वाटिकन एवं अपने अपने देशों के रंग बिरंगे ध्वजों को फहराकर अपने दिलों में समाये
आनन्द को अभिव्यक्ति प्रदान कर रहे थे।
इस समारोह में चेक गणतंत्र के हज़ारों
तीर्थयात्रियों सहित जर्मनी, पोलैण्ड, स्लोवक गणतंत्र, हँगरी तथा ऑस्ट्रिया के लगभग डेढ़
लाख श्रद्धालु उपस्थित हुए। वाटिकन प्रेस प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी के अनुसार चेक
गणतंत्र के इतिहास में पहली बार ख्रीस्तयाग समारोह के लिये लोगों की इतनी विशाल उपस्तिथि
को देखा गया। ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा ने कहा, "इतिहास उन अस्त व्यस्तताओं का
दर्शा चुका है जिनके जाल में मनुष्य तब फँस जाता है जब वह अपने विकल्पों एवं कार्यों
के क्षितिज से ईश्वर को हटा देता है।"
ग़ौरतलब है कि सन्त पापा बेनेडिक्ट 16
वें उस समय चेक गणतंत्र की यात्रा कर रहे हैं जब चेक जनता सन् 1989 ई. की मखमली क्रान्ति
की 20 वीं वर्षगाँठ मनाये जाने की तैयारी में संलग्न है। वह क्रान्ति जिसने काथलिक कलीसिया
पर निर्ममता से अत्याचार करनेवाली साम्यवादी प्रणाली को बाहर का दरवाज़ा दिखा दिया था।
दशकों के दमनचक्र को सहकर अब स्वतंत्रता की साँस ले रही चेक जनता को सन्त पापा ने इस
बात के प्रति सचेत किया कि समाज के नैतिक कल्याण की गारंटी के लिये तकनीकी प्रगति काफी
नहीं है। 40 फुट ऊँचे स्टेनलेस स्टील के चमकते क्रूस तले निर्मित वेदी से सन्त पापा ने
कहा, "भौतिक उत्पीड़न से मनुष्य को मुक्ति मिलना आवश्यक है किन्तु इससे भी अधिक आवश्यक
है उन बुराईयों से मुक्त होना जो आत्मा पर प्रहार करती हैं।"
रविवार अपराह्न सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने प्राग के महाधर्माध्यक्षीय निवास में चेक गणतंत्र के अन्य ख्रीस्तीय
सम्प्रदायों के प्रतिनिधि धर्माधिकारियों से मुलाकात की। इस मुलाकात के अवसर पर सन्त
पापा ने 15 वीं शताब्दी के सुधारक यान हुस को भी याद किया जिन्हें प्रॉटेस्टेण्ट सुधारवाद
का अग्रदूत माना जाता है तथा जिन्हें जलाकर मार डाला गया था। सन्त पापा ने कहा कि केवल
ख्रीस्तीय एकता के मार्ग को आगे बढ़ाने के लिये ही नहीं अपितु यूरोपीय समाज के कल्याण
के लिये भी यान हुस के प्रकरण पर विचार विमर्श करना महत्वपूर्ण है। इसी मुलाकात के अवसर
पर एक बार फिर सन्त पापा ने यूरोप के लोगों को उनकी ख्रीस्तीय धरोहर का स्मरण दिलाया।
उन्होंने कहा कि यूरोप की ख्रीस्तीय जड़ें इस महाद्वीप को ऐसा आध्यात्मिक एवं नैतिक आहार
प्रदान करतीं हैं जिससे यूरोप विश्व की अन्य संस्कृतियों एवं अन्य धर्मों के लोगों के
संग अर्थपूर्ण वार्ता में प्रवेश करता है।
ख्रीस्तीय एकतावर्द्धक मुलाकात पर
टीका करते हुए फादर फेदरीको लोमबारदी ने पत्रकारों को बताया कि इस मुलाकात में चेक गणतंत्र
के यहूदी प्रतिनिधि भी उपस्थित थे जिनके साथ सन्त पापा ने स्नेहवश हाथ मिलाया। इस अवसर
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्थानीय यहूदियों द्वारा सहे गये उत्पीड़न के बारे में
कोई चर्चा नहीं हुई। अनुमान है कि नाज़ियों द्वारा चेक क्षेत्र के लगभग 80,000 यहूदियों
को नज़रबन्दी शिविरों में मौत के घाट उतार दिया गया था। वैसे चेक गणतंत्र में शनिवार
को आरम्भ अपनी यात्रा के दौरान सन्त पापा ने भूतपूर्व कठोर साम्यवादी शासन प्रणाली के
दौरान हुए धार्मिक उत्पीड़न का स्मरण दिलाकर चेक जनता से आग्रह किया है कि वे उस विश्वास
पर पुनर्विचार करें जिसका अनेक चेक नागरिक परित्याग कर चुकें हैं।
ख्रीस्तीय
सम्प्रदायों के प्रतिनिधि धर्माधिकारियों को अपना सन्देश देने के बाद सन्त पापा ने प्राग
के कस्त्तेलो दी प्राहा भवन में अकादमी जगत के बुद्धिजीवियों को सम्बोधित किया। विश्वविद्यालयीन
छात्रों, प्राध्यपकों एवं बुद्धिजीवियों को सन्देश देने के बाद सन्त पापा ने विश्वविद्यालय
के स्वर्ण ग्रन्थ पर सन्त योहन रचित सुसमाचार के शब्द कि सत्य तुम्हें मुक्ति दिलायेगा
लातीनी भाषा में लिखकर उसपर अपने हस्ताक्षर किये।
सोमवार को अपनी यात्रा का अन्तिम
दिन सन्त पापा ने चेक गणतंत्र एवं केन्द्रीय यूरोप के संरक्षक सन्त वेनचेस्लाव के शहादत
स्थल स्तारा बोलेस्लाव में व्यतीत किया। 28 सितम्बर को ही सन्त विनचेसलाव का पर्व मनाया
जाता है। चेक गणतंत्र में यह सार्वजनिक अवकाश का दिन है। स्तारा बोलेस्लाव नगर में ही
सन्त विनचेसलाव को समर्पित गिरजाघर है जहाँ सम्पूर्ण वर्ष के दौरान यूरोप के तीर्थयात्रा
श्रद्धार्पण हेतु आते हैं। सोमवार को सन्त पापा ने इसी गिरजाघर में लगभग 20 वृद्ध पुरोहितों
को आशीर्वाद दिया तथा पवित्र यूखारिस्त के आगे घुटने टेक कर मौन प्रार्थना की। गिरजाघर
के तलघर में सुरक्षित सन्त विनचेसलाव के अवशेषों पर भी सन्त पापा ने पुष्पांजलि अर्पित
की। तदोपरान्त उन्होंने गिरजाघर से लगभग एक किलो मीटर की दूरी पर स्थित मेलनिक मार्ग
पर विस्तृत उद्यान में ख्रीस्तयाग अर्पित किया जिसमें 40,000 हज़ार तीर्थयात्री उपस्थित
हुए। युवाओं को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें भावी युग एवं भावी कलीसिया का अभिनायक
मानते हैं इसीलिये उनकी हर प्रेरितिक यात्रा में युवाओं को विशेष स्थान दिया जाता है।
मेलनिक मार्ग पर विस्तृत उद्यान में ख्रीस्तयाग समारोह के उपरान्त उन्होंने चेक गणतंत्र
के युवाओं को भी सम्बोधित किया।
अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में यद्यपि चेक
गणतंत्र के लोग ईश्वर एवं धर्म के प्रति अधिक उपेक्षाभाव रखते हैं तथापि धर्म और ईश्वर
में विश्वास का आह्वान करनेवाले सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का उन्होंने हार्दिक स्वागत
किया। उनके नेतृत्व में सम्पन्न समारोहों में वे हज़ारों की तादाद में उपस्थित हुए। विशेष
रूप से रविवार को लोगों का उत्साह अपने चरम बिन्दु पर था। ब्रेत्स्लाव नगर के एक विद्यार्थी
डेनियल राम्पाचेक ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि सन्त पापा बेनेडिक्ट यहाँ कभी
आये नहीं थे तथा उन्हें देखना एक अद्वितीय अनुभव है। उनका कहना था कि विशेष रूप से जब
लोग घोर आर्थिक संकट के परिणामों को भुगत रहे हैं तब उन्हें आशा का बहुत ज़रूरत है और
सन्त पापा यही कर रहे हैं, वे लोगों में आशा का संचार कर रहे हैं। रविवार को देवदूत
प्रार्थना के अवसर पर उन्होंने भक्त समुदाय से अपील की थी वे अपने विश्वास की समृद्ध
धरोहर में वर्तमान प्रश्नों का हल ढँढें। उनकी अपील थी, "अपने पूर्वजों से मिली आध्यात्मिक
धरोहर को आप बरकरार रखें... उसे संजोये रखें तथा उसका उपयोग आज की ज़रूरतों का प्रत्युत्तर
देने के लिये करें।"