2009-09-28 16:33:17

चेक गणराज्य में अकादमिक जगत् के बुद्धिजीवियों के लिए संत पापा का संदेश


इस संध्या हमारी मुलाकात मुझे शूभ अवसर प्रदान करती है कि समाज में विश्वविद्यालयों और शिक्षण के उच्च संस्थानों की अपरिहार्य़ भूमिका के प्रति मैं सम्मान को व्यक्त करूँ। समाज में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को धारण करने और बरकरार रखने में जो कि देश की बौद्धिक विरासत और इसके भावी विकास की नींव को मजबूती प्रदान करती है, अकादमी् जगत की सेवा इसे समृद्ध करती है। चेक समाज में 20 साल पहले आये महान परिवर्तनों के लिए सुधार के आनदोलनों की उत्पत्ति विश्वविद्यालय और विद्धार्थी सर्कलों से ही हुई। स्वतंत्रता की चाह ने विशेषज्ञों के कार्य़ को सत्य की खोज के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया यह किसी भी देश के कल्याण के लिए अपरिहार्य़ है।

मैं आपको सम्बोधित कर रहा हूँ एक प्रोफेसर रहे व्यक्ति के रूप में जो अकादमिक स्वतंत्रता तथा तर्क के यथार्थ उपयोग के अधिकार का समर्थक रहा है तथा अब संत पापा के रूप में गडे़रिये की अपनी भूमिका में जो मानवता के नैतिक विचारशीलता की आवाज के रूप में पहचाना और माना जाता है। कुछ लोग तर्क देते हैं कि धर्म, विश्वास और नैतिकता द्वारा उठाये गये सवालों को सामूहिक तर्क वितर्क के दायरे में स्थान नहीं है। यह नजरिया सही नहीं है। स्वतंत्रता जो तर्क के अभ्यास करने को रेखांकित करती है वह चाहे विश्वविद्यालय या कलीसिया में हो इसका उद्देश्य है। यह सत्य की खोज की ओर निर्देशित है। ज्ञान पाने की मानव की प्यास हर पीढ़ी को प्रोत्साहित करती है कि वह तर्क की धारणा को व्यापक बनाये तथा विश्वास रूपी झरना से जल पीये। सुसमाचार की सेवा में संग्रहित और संकलित श्रेष्ठ विवेक की समृद्ध विरासत का परिणाम था कि प्रथम ख्रीस्तीय मिशनरियों ने इस भूमि में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता का आधार डाला जो आज भी कायम है। इसी भावना में संत पापा क्लेंमेंट षष्टम नें 1347 में विख्यात चार्ल्स यूनिवर्सिटी की नींव डाली जिसने यूरोपीय अकादमिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सर्कलों में महत्वपूर्ण योगदान देना जारी रखा है।

विश्वविद्यालय या किसी शैक्षणिक संस्थान की यथोचित स्वायतत्ता सत्य के प्राधिकार के प्रति अपनी जिम्मेदारी में ही अर्थ पाती है। लेकिन यह स्वायतत्ता कई रूपों में बदली जा सकती है। पारलौकिकता के प्रति खुली महान प्रशिक्षण परम्परा, जो यूरोप में स्थापित विश्वविद्यालयों के आधार में रही है बहुत ही व्यवस्थित तरीके से भौतिकवाद की विचारधारा, धर्म पर दबाव और मानवीय भावनाओं के दमन के द्वारा दबा दी गयी है। सन 1989 में विश्व ने असफल तानाशाही विचारधारा के पतन और मानव आत्मा की जीत को देखा। स्वतंत्रता और सत्य की तृष्णा हमारी सामान्य मानवता का अभिन्न हिस्सा है। इतिहास ने दर्शाया है कि इसका कदापि उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। यह प्यास धार्मिक विश्वास, कला, दशर्नशास्त्र , ईशशास्त्र सिहत विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्र अपने तरीके से अनुशासित चिंतन और ठोस अभ्यास के स्तर पर इसका जवाब देने का प्रयास करते हैं। रेक्टरों और प्रोफेसरों का शोध कार्यों सहित यूनिवर्सिटी के मिशन में जिममदारी है कि वे युवाओं के मन और दिल को आलोकित करें। समग्र शिक्षा के विचार को जो सत्य में ज्ञान की एकता पर आधारित है इसे पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। यह समसामयिक समाज में ज्ञान के टुकड़े टुकडे़ होने की प्रवृत्ति के विपरीत काम करती है। सूचना और तकनीकि क्षेत्र में व्यापक विकास होने से तर्क को सत्य के अभ्यास से दूर करने का प्रलोभन आता है। सापेक्षवाद वह पर्दा उपलब्ध कराता है जिसके पीछे अकादमिक संस्थानों की स्वायतत्ता को कम करने के नये खतरे हो सकते हैं।

अकादमिक संस्थानों में राजनैतिक तानाशाही से होनेवाले हस्तक्षेप का युग बीत चुका है लेकिन तर्क और अकादमिक शोध के सामने अल्पकालीन उपयोगितावाले या व्यवहारिकता वाले लक्ष्यों तथा वैचारिक रूप से हित साधनेवाले समूहों की ओर से उत्पन्न दबाव रहता है।

युवाओं की उदारता और आदर्शवाद को पूरा करने के लिए बनाये जानेवाले अध्ययन कार्य़क्रम जो उन्हें उत्कृष्टता के लिए मदद करते हैं मैं शिक्षा के महान कार्य़ में परस्पर सहयोग और साझा विचारों के अनुभवों का उपयोग करने के लिए आपको प्रोत्साहित करता हूँ। संत पापा जोन पौल द्वितीये ने तर्क और विश्वास के मध्य संबंध की पूर्ण समझदारी का प्रयास किया जो दो डैने के समान मानव आत्मा को सत्य पर चिंतन करने के लिए ऊपर उठाते हैं। इनका अपना अपना कार्य़ क्षेत्र होने के साथ ही ये एक दूसरे को समर्थन देते हैं। तर्क की समझ जो दिव्यता के प्रति बहरा है धर्म को कम आंकता है यह संवाद की संस्कृति में प्रवेश करने में अक्षम है। सत्य की खोज करने तथा इसे पाने और इसके अनुसार जीवन जीने की मानवीय क्षमता पर विश्वास ने महान यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना कराया। इसकी पुर्नपुष्टि कर मानव के यथार्थ विकास के लिए जरूरी बौद्धिक ताकतों को साहस प्रदान करें।








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