चेक गणराज्य में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा की पृष्टभूमि
श्रोताओ, सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने शनिवार
26 सितम्बर को रोम समयानुसार प्रातः नौ बजकर बीस मिनट पर रोम के च्यामपिनो हवाई अड्डे
से चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के लिये प्रस्थान किया। सोमवार 28 सितम्बर तक सन्त पापा
चेक गणराज्य की प्रेरितिक यात्रा पर हैं। इटली से ऑस्ट्रिया एवं जर्मनी होते हुए उनका
आल इतालिया 320 विमान प्रातः साढ़े ग्यारह बजे प्राग के अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे स्तारा
रूज़िन पहुँचा। सन् 2005 में काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष पद पर अपनी नियुक्ति के बाद
से अब तक सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें विदेशों में 12 प्रेरितिक यात्राएँ कर चुके हैं।
चेक गणराज्य की तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा उनकी 13 वीं विदेश यात्रा है। इससे पूर्व
स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय सन् 1995 एवं सन् 1997 में चेक गणतंत्र की प्रेरितिक
यात्राएँ कर चुके हैं। काथलिक धर्माध्यक्षों के आमंत्रण पर सन्त पापा यह प्रेरितिक यात्रा
कर रहे हैं जिसके दौरान वे चेक गणराज्य एवं बोहेमिया के संरक्षक सन्त वेनचेसलाव के प्रति
श्रद्धार्पण करेंगे। सन्त वेनचेसलाव 10 वीं शताब्दी के राजकुमार थे जिन्होंने चेक तथा
सम्पूर्ण बोहेमिया को सुसमाचार का प्रकाश दिखाया। उन्हीं के संरक्षण में इस क्षेत्र में
काथलिक धर्म का सूत्रपात हुआ।
यूरोपीय महाद्वीप स्थित चेक गणराज्य की उत्तर पूर्वी
सीमा पर पोलैन्ड, पश्चिमी सीमा पर जर्मनी, दक्षिण मे ऑस्ट्रिया और पूर्व मे स्लोवाकिया
है। चेक गणराज्य की कुल आबादी एक करोड़ तीस लाख है जिनमें 32 प्रतिशत काथलिक धर्मानुयायी
है। इसकी राजधानी है प्राग तथा राजभाषा है चेक। अब यदि इतिहास पर एक दृष्टि डाली जाये
तो सन् 1989 ई. में बर्लिन की दीवार के ढह जाने पर एक के बाद एक केन्द्रीय एवं पूर्वी
यूरोप के साम्यवादी शासनों का पतन आरम्भ हो गया। ततकालीन चेकोस्लोवाकिया से भी सन् 1990
में सोवियत सेना ने हटना शुरु किया जो सन् 1991 में पूरी तरह से हट गई। पहली जनवरी सन्
1993 से चेकोस्लोवाकिया, चेक एवं स्लोवाक, दो स्वतंत्र गणतंत्रों में विभाजित हो गया।
सन् 2002 में चेक गणतंत्र एवं वाटिकन के बीच एक धर्मसन्धि पर हस्ताक्षर किये गये थे जिसे
अब तक चेक संसद का अनुसमर्थन नहीं मिला है।
ग़ौरतलब है कि सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें साम्यवाद के कठोर शासनकाल के पतन के बीस साल बाद केन्द्रीय यूरोप के बीचोबीच स्थित
चेक गणराज्य की यात्रा पर हैं। साम्यवादी काल के कठोर प्रतिबन्धों को हटा दिया गया है
तथा धार्मिक स्वतंत्रता के दरवाज़े खोल दिये गये हैं किन्तु इन कथित खुले दरवाज़ों के
भीतर बहुत ही कम लोग प्रवेश कर पाये हैं। जी हाँ, चेक गणराज्य की आधी से अधिक जनता स्वतः
को ग़ैरविश्वासी, अज्ञेयवादी एवं नास्तिक घोषित करती है। प्राचीन काल के प्रेरित एवं
मिशनरी के सदृश, शनिवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने चेक गणतंत्र में अपनी तीन दिवसीय
यात्रा आरम्भ की ताकि यहाँ के लोगों को उनके ख्रीस्तीय मूल का स्मरण कराकर उनमें विश्वास
की ज्योति प्रज्वलित कर सकें।
विगत सप्ताह रविवारीय देवदूत प्रार्थना से पूर्व
चेक गणतंत्र में अपनी यात्रा की घोषणा करते हुए सन्त पापा ने कहा था, "सम्पूर्ण महाद्वीप
की तरह ही चेक गणतंत्र को भी विश्वास एवं आशा को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है।"
वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने कहा, "सन्त पापा यूरोप का हृदय कहे जानेवाले
चेक गणतंत्र की यात्रा पर जा रहे हैं जहाँ ख्रीस्तीय धर्म ने महत्वपूर्ण योगदान दिया
है।" किन्तु उन्होंने यह भी बताया कि देश में धर्म के प्रति उदासीनता इतने विस्तृत रूप
से व्याप्त है कि धर्म को माननेवाले अल्पसंख्यक बन गये हैं।
साम्यवादी काल को
समाप्त हुए बीस वर्ष बीत चुके हैं किन्तु काथलिक कलीसिया अभी भी उसकी वैध अचल सम्पत्ति
के लौटाये जाने की बाट जोह रही है। स्मरण रहे कि सन् 1948 ई. में साम्यवादियों ने कलीसिया
की सारी चल और अचल सम्पत्ति जब्त कर ली थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्राग का सन्त वीतुस
महागिरजाघर जो आराधना अर्चना के लिये तो काथलिक कलीसिया को दे दिया गया किन्तु जिसका
मालिकाना अधिकार अभी भी चेक सरकार के पास है। सन् 2008 में सरकार ने एक विधेयक का प्रारूप
तैयार किया जिसके तहत कलीसिया एवं अन्य धार्मिक संस्थाओं की सम्पत्ति लौटाई जानी है किन्तु
चेक संसद द्वारा इस विधेयक को अनुमोदन नहीं मिला।
दशकों के साम्यवाद ने केन्द्रीय
एवं पूर्वी यूरोप के कई देशों के लोगों में धर्म के प्रति जिज्ञासा को उत्पन्न किया है
किन्तु चेक गणतंत्र इस दृष्टि से असामान्य रहा है जहाँ कलीसिया के सदस्यों की संख्या
में भारी गिरावट देखी गई है। 2001 की सांख्यकी के अनुसार एक करोड़ से अधिक की आबादी वाले
इस देश में 33 लाख ने स्वतः को काथलिक धर्मानुयायी घोषित किया जबकि सन् 1991 में यह संख्या
45 लाख थी। लोगों में धर्म के प्रति उदासीनता का कारण क्या हो सकता है इस पर प्राग विश्वविद्यालय
के प्राध्यापक रे. थॉमस हालिक का कहना है कि ग़ैरविश्वास की जड़ें 19 वीं शताब्दी के
चेक राष्ट्रीयवाद में मूलबद्ध हैं जब चेक भूमि ऑस्ट्रो हँगरी साम्राज्य का भाग हुआ करती
थी। सन् 1948 में जब साम्यवादी आये तब उन्होंने कलीसिया को ऑस्ट्रो हँगरी साम्राज्य का
मित्र माना तथा उसे नाना प्रकार उत्पीड़ित किया। सभी गिरजाघर जब्त कर लिये गये तथा काथलिक
पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों को या तो गिरफ्तार कर जेल में पटक दिया गया, निष्कासित कर
दिया गया या फिर मार डाला गया। उन्होंने बताया कि चेकोस्लोवाकिया के चेक क्षेत्र को पूर्णतः
नास्तिक बनाने का साम्यवादियों ने भरसक प्रयास किया और इसी कुयोजना के तहत, यूरोप के
किसी भी देश की तुलना में, सबसे अधिक दमन चेक भूमि पर ही हुआ।
धर्म के प्रति
उदासीनता का एक और कारण यह भी है कि साम्यवाद के पतन के बाद काथलिक कलीसिया अथवा कोई
अन्य धर्म स्वतः को उचित ढंग से संगठित नहीं कर पाया। रे. थॉमस हालिक के अनुसार चेक गणतंत्र
के लोग अन्य यूरोपीय देशों के लोगों से कम धार्मिक नहीं हैं किन्तु इतना अधिक दमन सहने
के बाद संस्थाओं से उनका विश्वास हट गया है।
वाटिकन में कार्यरत चेक गणतंत्र
के राजदूत पावेल वोसालिक ने वाटिकन रेडियो को बताया कि चेक गणतंत्र के लोग अभी भी ईश्वर
एवं धर्म में विश्वास करते हैं किन्तु काथलिक धर्म के साथ सम्बन्धों को उन्होंने खो दिया
है। उनका कहना था कि सन् 1990 के आरम्भ में कलीसिया ने अवसर खो दिया, वह निर्णायक क्षण
खो दिया जब देश बहुत उदार था और काथलिक कलीसिया के साथ वार्ताओं के लिये तैयार था। उस
निर्णायक क्षण में कलीसिया युवाओं को उस भाषा में सम्बोधित नहीं कर पाई जिसमें वे स्वतः
को देख पाते, कलीसिया वह सन्देश नहीं दे पाई जिसे चेक भूमि के युवा सुनना चाहते थे। राजदूत
पावेल वोसालिक सन्त पापा की उक्त यात्रा को चेक समाज एवं चेक गणतंत्र की काथलिक कलीसिया
के बीच सम्वाद के रास्तों को पुनः खोलने के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें चेक गणतंत्र में अपनी तीन दिवसीय यात्रा के प्रति आशावान हैं क्योंकि
उनका दृढ़ विश्वास है कि नैतिक एवं मानवीय मूल्यों में विश्वास से ही कोई भी देश सच्चा
विकास कर सकता है और काथलिक कलीसिया इन्हीं मूल्यों की शिक्षा देती है।