देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
श्रोताओ, संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 20 सितम्बर को रोम परिसर में कास्तेल गोंदोल्फो
स्थित ग्रीष्मकालीन प्रेरितिक निवास के प्रांगण में देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों
और पर्यट्कों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने इस प्रार्थना से पूर्व
विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहाः
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
पारम्परिक
रविवारीय चिंतन के लिए आज मैं संत याकूब के पत्र के एक अवतरण से अपने चिंतन को आरम्भ
करता हूँ जिसका प्रस्ताव आज की पूजन धर्मविधि हमारे लिए करती है। मैं विशेष रूप से इस
अभिव्यक्ति पर रूकता हूँ जो अपने सौंदर्य़ तथा सममामयिक सार्थकता के लिए प्रभावित करती
है। इसका संबंध यथार्थ प्रज्ञा के बारे में प्रेरित द्वारा वर्णन करने से है जो झूठी
प्रज्ञा के विपरीत है। झूठी प्रज्ञा दुनियावी, भौतिक और शैतानी है तथा इसकी पहचान इन
तथ्यों से होती है कि वह ईष्या, तर्क वितर्क, अव्यवस्था और हर प्रकार के बुरे कृत्य को
करने के लिए उकसाती है इसके विपरीत सच्ची प्रज्ञा जो ऊपर से आती है यह सर्वप्रथम शुद्ध
, शांतिमय , उदार, विनम्र , दया तथा अच्छे फलों से पूर्ण, निष्पक्ष और ईमानदार है। बाइबिल
की परम्परा के अनुसार सात गुणों की सूची जिसमें से यथार्थ प्रज्ञा की परिपूर्णता आती
है तथा यह सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है। प्रथम और मुख्य गुण संभवतः अन्य गुणों का
प्रमेय जिसे संत याकूब कहते हैं वह है-शुद्धता अर्थात् पवित्रता, मानव आत्मा में ईश्वर
का पारदर्शी चिंतन। और ईश्वर के समान, जिसमें से यह आती है प्रज्ञा को इसकी जरूरत नहीं
होती है कि यह स्वयं को ताकत के बल पर थोपे क्योंकि इसमें सत्य और प्रेम की अविजित ताकत
है, जो स्वयं की पुष्टि करती है। यही कारण है कि यह शांतिमय, उदार और विनीत है। इसे पक्षपाती
बनने की जरूरत नहीं है और न ही इसे झूठ बोलने की जरूरत होती है। यह उदार और क्षमाशील
है इसकी पहचान अपने अच्छे फलों से होती है जो यह बहुतायत में उत्पन्न करती है।
इस
प्रज्ञा के सौंदर्य़ पर मनन चिंतन करने के लिए क्यों नहीं रूका जाये। ईश्वरीय प्रेम के
इस अप्रदूषित स्रोत से क्यों नहीं प्रज्ञा के मूल को प्राप्त किया जाये जो हमें झूठ और
अहंकार की गंदगियों से साफ करती है। यह हर जन के लिए सही है लेकिन पहले स्थान में, उन
सब लोगों के लिए जिन्हें धार्मिक और नागरिक समुदायों में, सामाजिक और राजनैतिक संबंधों
में तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में, शांति के रचयिता और प्रसारक बनने के लिए बुलाया
गया है। इन दिनों में, शायद व्यापक समाज के अंदर कुछेक गतिकी के कारण एक व्यक्ति बहुधा
सत्य के प्रति आदर की कमी को देखता है तथा शब्द जो आक्रामकता, नफरत और बदला लेने की प्रवृत्ति
से युक्त होते हैं। संत याकूब लिखते हैं- धार्मिकता शान्ति के क्षेत्र में बोयी जाती
है और शान्ति स्थापित करनेवाले उसका फल प्राप्त करते हैं। लेकिन शांति के कार्य़ करने
के लिए हमें चाहिए कि हम शांति पुऱूष बनें, ऊपर से आनेवाली प्रज्ञा के विद्यालय में प्रवेश
करें, इसके सदगुणों को धारण करें और इसके प्रभावों को उत्पन्न करें। यदि प्रत्येक व्यक्ति
अपने दायरे में, विचारों, शब्दों और कार्य़ों में झूठ और हिंसा से इंकार करने तथा दूसरों
के प्रति आदर, समझदारी और सम्मान के भावों को विकसित करने में सफल हो जाता है शायद यह
दैनिक जीवन की हर समस्या का हल नहीं कर पायेगा लेकिन हम उनका सामना और अधिक शांतिपूर्ण
और प्रभावी तरीके से कर पायेंगे।
अतिप्रिय भाईयो और बहनो, और एक बार पवित्र
धर्मग्रंथ हमें मानव अस्तित्व के नैतिक पहलूओं पर चिंतन करने के लिए ले चलता है लेकिन
एक वास्तविकता से आरम्भ करते हैं जो उसी नैतिकता के आगे चलती है अर्थात यथार्थ प्रज्ञा
से। ईश्वर से विश्वासपूर्वक प्रज्ञा की आत्मा के लिए निवेदन करें उनकी मध्यस्थता के द्वारा
जिन्होंने देहधारी प्रज्ञा, येसु ख्रीस्त का अपने गर्भ में स्वागत किया और उन्हें जन्म
दिया। मरिया, प्रज्ञा का सिंहासन हमारे लिए प्रार्थना कर।
इतना कहने के बाद संत
पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान
किया।