बुधवारीय- आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश 16 सितंबर,
2009
वाटिकन सिटी, 16 सितंबर, 2009। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें
ने पौल षष्टम सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित
किया। उन्होंने कहा-
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षा माला में
हम पूर्व के एक मठाधीश के जीवन में चिंतन करेंगे जिनका नाम था सिमेओन जो ' आधुनिक ईशशास्त्री
' के नाम से जाने जाते हैं।
सिमेओन का जन्म सन् 949 ईस्वी में एशिया माइनर मे
हुआ था। अपने युवाकाल में ही वह कोन्सतनतिनोपल चला गया और वहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई की।
अपनी पढा़ई के दरमियान उन्होंने एक किताब पढ़ी जिसका नाम था ' द स्प्रीचुवल लॉ
' जिसे मार्क नामक एक मठाधीश ने लिखा था।
इस किताब को पढ़ने के बाद सिमेओन
के जीवन में व्यापक परिवर्त्तन आये। उस किताब की वे पंक्तियाँ जिसने सिमेओन को बदल डाला
वे थे।
"अगर तुम आध्यात्मिक चंगाई चाहते हो तो अंतःकरण के प्रति सचेत हो जाओ।
उसी कार्य को करो जिसे तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें बताये और सदा ही अंतःकरण की बात सुनते
रहो।"
सिमेओन उन बातों से बहुत प्रभावित हुआ और अपने आपको एक मठाधीश के रूप
में ईश्वर को समर्पित कर दिया। सिमेओन के एक शिष्य ने उसकी रचनाओं और लेखों को जमा किया
और उसका अध्ययन किया।
उसने बताया कि सिमेओन के जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति
और कार्यों की स्पष्ट झलक मिलती है। सिमेओन ने यह भी बताया कि ईसाइयों को चाहिये कि वे
ईश्वर से व्यक्तिगत रूप से जुड़े रहें।
उनका यह मानना था कि ईश्वर के बारे में
ज्ञान किताबों से नहीं मिलता है पर मन-दिल को स्वच्छ करने और ईश्वर की ओर वापस लौटने
से मिलता है।
सिमेओन यह भी कहा करते थे कि येसु मसीह से एक हो जाना कोई कठिन
कार्य नहीं है यह हमारे बपतिस्मा संस्कार का स्वाभाविक फल है।
आज हम सिमोओन के
जीवन से प्रेरणा पायें और अपने आध्यात्मिक जीवन को मजबूत करने के कार्य करें। हम अपने
अंतःकरण की आवाज़ को सुनें और प्रति दिन ईश्वर के प्रेम में बढ़ने का प्रयास करते रहेंय़
इतना
कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों,
विशेष कर सोसायटी ऑफ मेरी के पुरोहितों धर्मबहनों, भाइयों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार
के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद
दिया।