बुधवारीय- आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश 5 अगस्त,
2009
कास्तेल गंदोल्फो, 5 अगस्त, जून, 2009 । बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त
सोलहवें ने कास्तेल गंदोल्फो स्थित अपने ग्रीष्मकालीन आवास के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों
तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा
–
प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में हम आइये हम संत जोन मेरी
वियन्नी के जीवन पर मनन-चिन्तन करें जिसका पर्व-दिवस हमने मंगलवार 4 अगस्त को मनाया है।
इसी दिन फ्रांस के अर्स में एक सौ पचास वर्ष पहले संत जोन मेरी वियन्नी की मृत्यु हो
गयी थी।
संत जोन मेरी वियन्नी का जन्म 8 मई 1776 को दारिदिली नामक छोटे गाँव
के एक ग़रीब परिवार में हुआ था। उसके माता-पिता ग़रीब थे पर उनका विश्वास मजबूत था।
वह
बचपन से ही एक पुरोहित बनना चाहता था पर उसे कोई मदद देने वाला नहीं था। 17 साल की आयू
तक वह निरक्षर था और भेड़-बकरियाँ चराया करता था।
बाद में पड़ोस के कुछ पुरोहितों
की मदद से 29 साल की आयू में वह एक पुरोहित बना। वह सदा ही कहा करता था कि पुरोहित बनना
उसके लिये ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है।
जब वह एक बहुत ही छोटे और अंजान पल्ली
में पल्ली पुरोहित के रूप में भेजा गया तो उन्होंने लोगों पर व्यापक छाप छोड़ी।
उसके
जीवन का केन्द्र था यूखरिस्तीय बलिदान जिसे वह भक्तिपूर्वक चढ़ाता और इसी के आदर्श पर
लोगों की सेवा के लिये अपना जीवन समर्पित करता था।
पापस्वीकार संस्कार के लिये
वह घंटों बैठने के कारण लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय था।
संत जोन मेरी
वियन्नी पल्ली पुरोहितों के संरक्षक संत हैं। पुरोहितों के संरक्षक संत जोन मेरी वियन्नी
के जीवन पर जब हम गौ़र करेंगे तो हम पायेंगे कि उनका जीवन भी येसु से संयुक्त था लोगों
की सेवा में समर्पित था।
उन्होंने नम्रता पूर्वक और पूरे समर्पण के साथ सुसमाचार
के प्रचार में सहर्ष अपना सारा जीवन दे दिया।
यह वर्ष पुरोहितों के लिये समर्पित
वर्ष है। पुरोहितों को ईश्वर इसलिये बुलाते हैं ताकि उनका जीवन येसु से जुड़ा रहे और
वे येसु से एक हो जायें और उन्हीं कार्यों को करें जिसे खुद येसु मसीह ने दुनिया के लिये
किया।
आइये हम पुरोहितों के लिये विशेष प्रार्थना करें ताकि पुरोहितो के संरक्षक
संत जोन मेरी वियन्नी की मध्यस्थता से प्रार्थना करें कि वे एक नये उत्साह के साथ, पवित्रता
में आगे बढ़ते हुए अपने-आपको को ईश्वर और लोगों की सेवा के लिये समर्पित कर सकें।
इतना
कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने इंगलैंड, चीन, कोरिया और
अमेरिका के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की
कृपा और शांति की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।