2009-08-03 12:39:40

कार्डिनल अरिंजे होंगे एशियाई धर्माध्यक्षों की महासभा में पोप-प्रतिनिधि


वाटिकन सिटी, 3 अगस्त, 2009. संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है एशियाई धर्माध्यक्षों की सभा इस बात की चर्चा हो कि धर्माध्यक्ष विश्वासियों को इस बात के लिये प्रोत्साहित करें कि वे रविवारीय यूखरिस्तीय समारोह सहभागी हों, पापस्वीकार संस्कार ग्रहण करें और पवित्र धर्मग्रंथ से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें।
संत पापा ने उक्त निर्देश फिलीपींस की राजधानी मनीला मे आयोजित एशियाई धर्माध्यक्षों की महासभा के लिये वाटिकन के विशेष प्रतिनिधि कार्डिनल अरिंजे को दी।
संत पापा ने वयोवृद्ध कार्डिनल फ्रांसिस अरिंजे को यह भी निर्देश दिये हैं कि वह धर्माध्यक्षों को इस बात के लिये प्रोत्साहित करे कि वे पुरोहितों के वर्ष में अपने पुरोहितों के बुलाहट की रक्षा के लिये विशेष कदम उठायें।
संत पापा ने कार्डिनल अरिंजे के वाटिकन प्रतिनिधि होने की जानकारी को 13 जून को दी थी जब एफएबीसी की प्लेनरी सभा का आयोजन किया गया था।
बाद में संत पापा ने अरिंजे को औपचारिक रूप से 1 अगस्त को एक पत्र लिखा उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाया है।
इस अवसर पर संत पापा ने यह भी बतलाया कि उन्हें मालूम है कि एशिया के सब धर्माध्क्ष इस बात के लिये उत्साहित हैं कि एशियाई कलीसिया यूखरिस्त के अर्थ को समझे इसको अपने जीवन में उचित स्थान दे और इसी लिये महासभा की विषय वस्तु है ' एशियाई कलीसिया का यूखरिस्तीय जीवन ' ।
ज्ञात हो कि एशियाई धर्माध्यक्षों की महासभा का आयोजन अगले 11 से 16 अगस्त तक के लिये किया गया है।
कार्डिनल अरिंजे को लिखे पत्र में संत पापा ने कहा कि महासभा के लिये अरिंजे का चुना जाना सबसे सौभाग्यपू्र्ण बात है क्योंकि एशियाई यूखरिस्तीय जीवन से वे भली-भांति परिचित हैं।
कार्डिनल अरिंजे सदा इस बात के लिये प्रयासरत रहें हैं कि लोग यूखरिस्त के अर्थ को समझें और इससे उनकी आत्माएँ लाभान्वित हों।
76 वर्षीय कार्डिनल अरिंजे सबसे लोकप्रिय और सक्षम अफ्रीकी धर्माध्यक्ष हैं जिन्हें संत पापा पौल षष्टम् ने सन् 1965 में धर्माध्यक्ष बनाया था जब वे सिर्फ 32 साल के थे और उसी वर्ष उन्होंने वाटिकन की द्वितीय महासभा में हिस्सा लिया था।
सन् 1985 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल बनाया।
उन्होंने अंतरधार्मिक वार्ता के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष और पूजन पद्धति और संस्कार संबंधी परमधर्मपीठीय संगठन के प्रीफेक्ट के रूप में भी अपनी सेवायें कलीसिया को दी हैं।








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