नयी दिल्ली, 20 जुलाई, 2009। ईसाई धर्मिक नेताओं ने मानव संसाधन विभाग द्वारा प्रस्तावित
शिक्षा संबंधी बदलाव पर सहमति जतायी है। पर उन्होंने अपने इस बात को भी स्पष्ट कर
दिया है कि सरकार अनावश्यक रूप से अल्पसंख्यकों द्वारा चलाये जा रही संस्थाओं को अनावश्यक
छेड़-छा़ड़ न करे। ज्ञात हो कि मानव संसाधन विभाग के मंत्री कपिल सिब्बल ने जून में
एक प्रस्ताव लाया है जिसके तहते उन्होंने कई बातों को बदलने का प्रस्ताव किया है। उनका
मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाये जाने से यह अधिक प्रभावशाली मितव्ययी
और आम लोगों के लिये हितकारी होगा। अल्पसंख्यक नेताओं की एक बैठन 11 जुलाई को दिल्ली
में सम्पन्न हुई। उसमें इस बात पर बल दिया गया कि शिक्षा प्रणाली में परिवर्तने लाने
अच्छा है पर इससे अल्पसंख्यकों के अधिकारों को किसी प्रकार का हनन नहीं होना चाहिये।
सीबीसीआई के शिक्षा आयोग के सचिव फादर कुरियाला चित्तातुकलम ने कहा कि वे चाहते हैं
कि शिक्षा का स्तर उँचा हो पर चर्च इसके क्रियान्वयन को लेकर चिंतित है। उन्होंने
एक प्रस्ताव पेश किया उसके आधार पर शिक्षा के लिये काथलिक शिक्षण संस्थाओं के लिये एक
अलग आयोग का गठन हो जो यह देखे कि काथलिकों की संस्थाओं पर सरकार हस्तक्षेप न करे। सरकार
ने यह प्रस्ताव लाया है कि 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा दी जाये। ज्ञात
हो कि काथलिक कलीसिया अकेले 13 हजा़र 250 स्कूलों का संचालन करती औऱ450 कॉलेजों के साथ
दो यूनिवर्सिटी चलाती है। उसमें6 लाख 80 हज़ार विद्यार्थी पढ़ा करते हैं। सेमिनार
में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों ने इस बात पर बल दिया है कि शिक्षा प्रणाली में सरकार
द्वारा लाये गये बदलाव का स्वागत है पर अल्पसंख्यकों को जो संवैधानिक अधिकारों हैं जिसके
आधार पर संस्थाओं में प्रवेश-प्रक्रिया और शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में पूरी स्वतंत्रता
का अधिकार दिया गया है वह इसे न छीने।