2009-07-07 14:26:08

संत पापा का नवीनतम विश्वपत्र कारितास इन वेरिताते अथार्त सत्य में उदारता का लोकार्पण


संत पापा के नवीनतम विश्वपत्र कारितास इन वेरिताते अथार्त सत्य में उदारता का लोकार्पण मंगलवार 7 जुलाई को वाटिकन प्रेस कार्य़ालय में किया गया। 52 पृष्ठीय इस विश्वपत्र में परिचय तथा उपसंहार सहित 6 अध्याय हैं। संत पापा का यह विश्वपत्र काथलिक जगत और सदइच्छावाले सब लोंगों को सम्बोधित हे जिसमें उन्होंने कहा है कि सत्य में उदारता जिसका साक्ष्य येसु ख्रीस्त ने दिया है यही वह प्रमुख चलानेवाली ताकत है जो प्रत्येक मानव और सम्पूर्ण मानवजाति के यथार्थ विकास के पीछे है । संत पापा ने विश्वपत्र क् परिचय खंड में कहा है कि कलीसिया की सामाजिक शिक्षा के मूल में उदारता है। इसके साथ ही उन्होंने आगाह किया है कि सत्य के बिना उदारता की ख्रीस्तीयता भली भावनाओं का भंडार, सामाजिक एकता में मदद बन कर रह जायेगी जिसकी बहुत कम सार्थकता होगी। अतः विकास के लिए सत्य जरूरी है। विश्वपत्र के प्रथम अध्याय में संत पापा पौल षष्टम के विश्वपत्र पोपुलोरूम प्रोग्रेशियो के संदेश पर चर्चा करते हुए संत पापा ने रेखांकित किया है कि ईश्वर के बिना विकास नकारात्मक तथा अमानवीय बन जाता है। समाज भूमंडलीकृत होता जा रहा है, यह हमें पड़ोसी तो बनाता है लेकिन बंधु नहीं इसलिए हमें स्वयं को उत्साहित करने की जरूरत है ताकि अर्थव्यवस्था और अधिक मानवीय परिणामों की ओर उन्मुख हो। संत पापा ने विश्वपत्र के दूसरे, तीसरे और चतुर्थ अध्यायों में वर्तमान समय में मानव विकास, भ्रातृत्वमय आर्थिक विकास और नागर समाज, लोगों का विकास अधिकार और कर्तव्य तथा पर्यावरण पर चिंतन प्रस्तुत किया है। पाँचवे अध्याय में मानव परिवार का सहयोग पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए उन्होंने प्रवसन, सहदयता के सिद्धान्त, वित्त व्यवस्था के मुददों पर अपने विचार व्यक्त किया हैं। विश्वपत्र के 6 वें अध्याय में लोगों तथा तकनीकि के विकास पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा है कि तकनीकि को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिल सकती है । जैवनैतिकता के क्षेत्र में मानवीय नैतिक उत्तरदायित्व तथा तकनीकि जगत की सर्वोच्चता के मध्य सांस्कृतिक संघर्ष है। सामाजिक सम्प्रेषण से जुड़ी तकनीकियों का विकास लोगों की मर्यादा के प्रसार करने का आह्वान करती है। उपसंहार में संत पापा कहते हैं कि विकास के लिए चाहिए कि ख्रीस्तीय प्रार्थना में ईश्वर से संयुक्त रहें और इसके लिए प्रेम तथा क्षमा, संयम एवं दूसरों को स्वीकृति प्रदान करना, न्याय और शांति की जरूरत है।








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