स्वर्ग की रानी आनन्द मना प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें
द्वारा दिया गया संदेश
श्रोताओ, रविवार 17 मई को संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने संत पेत्रुस महामंदिर के प्रांगण
में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ स्वर्ग की रानी आनन्द
मना प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व दिये गये संदेश में उन्होंने कहाः-
प्रिय
भाईयो और बहनो,
मैं पवित्र भूमि की तीर्थयात्रा कर परसों वापस लौटा हूँ। मैं इस
तीर्थयात्रा के बारे में अगले बुधवार को आमदर्शन समारोह के अवसर पर विस्तार से चर्चा
करूँगा। इस समय सबसे पहले मैं ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे इस महत्वपूर्ण
प्रेरितिक यात्रा को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने की कृपा प्रदान की। मैं लातिनी प्राधिधर्माध्यक्ष
और जोर्डन, इस्राएल एवं फिलिस्तीनी प्रदेशों के धार्मिक अधिकारियों, पवित्र भूमि में
पवित्र स्थलों की देखरेख करनेवाले फ्रांसिस्कन धर्मसमाजियों, जोर्डन, इस्राएल और फिलिस्तीनी
प्रदेशों के प्रशासनाधिकारियों,आयोजकों,सेना तथा उन सब लोगों के प्रति आभारी हूँ जिन्होंने
अपना सहयोग दिया। मैं पुरोहितों, धर्मसमाजियों और सब विश्वासियों को धन्यवाद देता हूँ
जिन्होंने मेरे प्रति महान स्नेह का प्रदर्शन किया और अपनी प्रार्थना द्वारा मुझे समर्थन
और सहयोग दिया। सबको दिल की गहराई से धन्यवाद।
पवित्र स्थलों के दर्शन के साथ
यह तीर्थयात्रा प्रेरितिक यात्रा थी वहाँ रह रहे विश्वासियों को देखना, ईसाईयों के मध्य
एकता को बढ़ावा देना तथा यहूदियों और मुसलमानों के साथ वार्ता एवं शांति का निर्माण करना
था। होली लैंड जो अपनी प्रजा और सम्पूर्ण मानवजाति के लिए ईश्वर के प्रेम का प्रतीक है।
यह उस स्वतंत्रता और शांति का भी प्रतीक है जैसा कि ईश्वर सब लोगों के लिए चाहते हैं
तथापि कल और आज का इतिहास दिखाता है कि यह भूमि ठीक इसके विपरीत विभाजन और भाईयों के
बीच समाप्त न होनेवाले संघर्ष का प्रतीक बन गया है।यह कैसे हो सकता है हमारा दिल सही
तौर पर ऐसे सवाल करता है। यद्यपि हम जानते हैं कि पृथ्वी के बारे में ईश्वर की रहस्यमय
योजना है। संत योहन लिखते हैं- उन्होंने हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए अपने पुत्र
को भेजा। इसलिए पवित्र भूमि स्वयं में पाँचवें सुसमाचार की प्रकाशना का रूपक जैसा बन
गया है। जैसा कि कुछ लोग इसे कहते है और अपने इतिहास के कारण इसे लघु जगत समझा जा सकता
है जो न्याय, प्रेम और शांति वाले राज्य की और मानवजाति की थकाऊ यात्रा का सार है।
मुक्ति
का इतिहास एक व्यक्ति, अब्राहम और एक समुदाय, इस्राएल के बुलावे के साथ आरम्भ हुआ लेकिन
उनका मंतव्य सार्वभौमिकता थी, सम्पूर्ण मानव जाति की मुक्ति। मुक्ति के इतिहास में सदैव
दो बातें विशिष्टता और सार्वभौमिकता थीं। ईश्वर का भय मानें और न्याय के अभ्यास द्वारा
इस तरह से ईश्वर के राज्य के लिए खोलना सीखें और यही प्रत्येक अंतर धार्मिक वार्ता के
लिए गहन और व्यापक क्षेत्र है।
इस मरियम प्रार्थना के समापन से पूर्व हमारे विचार
श्रीलंका की ओर जाते हैं। संघर्ष प्रभावित क्षेत्र में फँसे नागरिकों के प्रति हम अपनी
सहदयता और आध्यात्मिक समीपता को व्यक्त करते हैं। देश के उत्तरी भाग में हजारों बच्चे,
महिलाएँ और बुजुर्ग जिन्होंने युद्ध के कारण अपने जीवन और आशा के अनेक वर्ष खो दिये।
मैं लड़ाकाओं से अपील करता हूँ कि नागरिकों को संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों से जाने की
अनुमति प्रदान की जाये। मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की पुकार में अपनी
आवाज संयुक्त करता हूँ जिसने कुछ दिनों पूर्व लोगों की हिफाजत और सुरक्षा सुनिश्चित करने
की माँग की थी। मैं काथलिक संगठनों सहित मानवतावादी संगठनों का आह्वान करता हूँ कि शरणार्थियों
को भोजन और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के अपने प्रयासों में कोई कसर उठा न रखें। मैं
इस प्रिय देश को मधु की माता मरियम के ममतामयी संरक्षण के सिपुर्द करता हूँ जो श्रीलंका
के सब लोगों द्वारा वंदनीय हैं। प्रभु से मेरी प्रार्थना है कि मेलमिलाप और शांति के
दिन जल्द लौट आयें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने स्वर्ग की रानी आनन्द मना
प्रार्थना क् पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।