जेरूसालेमः नाज़ी नरसंहार स्मारक पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की भावपूर्ण भेंट
जेरूसालेम में सोमवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने नाज़ी नरसंहार के शिकार बने यहूदियों
की याद में निमित जेरूसालेम स्थित याद वाशेम स्मारक की भेंट कर नाज़ी क्रूरता के शिकार
बने लोगों के प्रति भावभीनी श्रद्धान्जलि अर्पित की।
इस पुण्य स्मारक पर सन्त
पापा ने याद वाशेम स्मारक भवन में प्रवेश कर अनन्त ज्योति के प्रतीक दीप को प्रज्वलित
किया, नरसंहार के शिकार लोगों की भस्म को ढँकनेवाली शिला पर श्वेत एवं पीले रंग के फूल
अर्पित किये तथा नरसंहार से बच निकले कुछेक व्यक्तियों एवं उनके परिजनों से मुलाकात कर
उनके प्रति गहन सहानुभूति का प्रदर्शन किया।
याद वाशेम स्मारक पर उच्चरित शब्दों
में सन्त पापा ने शोआ अर्थात् नाज़ी नरसंहार की भयंकर त्रासदी का ज़िक्र किया तथा इसे
ऐसी नृशंसता निरूपित किया जिसने मानवजाति का अपयश किया है, इसकी पुनरावृत्ति कभी नहीं
होनी चाहिये। सुनें सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के शब्दः .... "मैं इस स्मारक के आगे
मौन रहकर खड़े होने के लिये आया हूँ जिसका निर्माण शोआ की भयंकर त्रासदी में मारे गये
लाखों यहूदियों की याद में किया गया है। उन्होंने अपना जीवन खो दिया, किन्तु वे अपने
नामों को कदापि नहीं खोयेंगे क्योंकि ये उनके प्रियजनों, बचे हुए सह-कैदियों तथा उन सबके
हृदयों पर अमिट रूप से अंकित हो गये हैं जिन्होंने यह दृढ़ संकल्प किया है कि वे मानवजाति
का अपयश करनेवाली इस प्रकार की नृशंसता को कभी फिर न दुहराने देंगे।"
अन्याय,
हिंसा एवं निर्दोष लोगों के रक्तपात की निन्दा करते हुए सन्त पापा ने आगे कहाः... "हम
मौन रख कर यहाँ खड़े हैं और उनका रुदन हमारे हृदयों में अभी भी प्रतिध्वनित हो रहा है।
यह रुदन अन्याय एवं हिंसा के हर कृत्य के विरुद्ध उठनेवाली पुकार है। यह निर्दोष लोगों
के रक्तपात की भर्त्सना है। यह धरती से प्रभु ईश्वर की ओर उठी हाबिल की आवाज़ है।"
तदोपरान्त,
ईश्वर में अपने अटूट विश्वास की अभिव्यक्ति का सभी से अनुरोध कर सन्त पापा ने कहा कि
प्रभु की अनुकम्पा एवं दया कभी खत्म नहीं होती वह हर दिन और हर क्षण नवीकृत होती रहती
है। उन्होंने प्राचीन व्यवस्थान के शोकगीत की इन पंक्तियों का पाठ किया ..."प्रभु की
कृपा बनी हुई है, उनकी अनुकम्पा समाप्त नहीं हुई है – वह हर सबेरे नई हो जाती है। उसकी
सत्यप्रतिज्ञा अपूर्व है। मेरी आत्मा कहती है- "प्रभु मेरा भाग्य है। मैं उस पर भरोसा
रखूँगा। जो प्रभु की खोज में लगा रहता है, उसके लिये प्रभु दयालु हैं। मौन रहकर प्रभु
की मुक्ति की प्रतीक्षा करना- यही सबसे उत्तम है।"