वाटिकन सिटीः नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के डरबन सम्मेलन की समीक्षा "महत्वपूर्ण"
वाटिकन ने नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र संघीय सम्मेलन को "महत्वपूर्ण" बताया है। जिनीवा
में सोमवार से नस्लवाद के विरुद्ध विश्व सम्मेलन आरम्भ हो गया है। दक्षिण अफ्रीका के
डरबन शहर में, नस्लवाद के विरुद्ध, सन् 2001 में सम्पन्न, सम्मेलन की समीक्षा उक्त सम्मेलन
में की जायेगी।
कुछ पश्चिमी देशों की आलोचनाओं के बावजूद रविवार को सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें ने रोम में रेजिना चेली प्रार्थना से पूर्व तीर्थयात्रियों को सम्बोधित
कर कहा कि नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन अति "महत्वपूर्ण" है क्योंकि इतिहास
की शिक्षाओं के बावजूद, आज भी विभिन्न देशों में रंग और जाति के आधार पर नस्लवाद जारी
है। सन्त पापा ने आशा व्यक्त की कि जिनीवा में जारी सम्मेलन से सभी देशों में नस्लवाद
को समाप्त करने के लिये शिक्षा एवं रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहन मिलेगा।
ग़ौरतलब
है कि सन् 2001 के सम्मेलन में नस्लवाद, जातीगत भेदभाव, विदेशी आप्रवासियों के प्रति
घृणा और इससे संबंधित असहिष्णुता पर "डरबन घोषणा" जारी की गई थी जिसकी समीक्षा के लिये
वर्तमान जिनीवा सम्मेलन आयोजित किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उक्त सम्मेलन
का अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इसराइल, और इटली की सरकार ने बहिष्कार कर दिया है क्योंकि
उनके अनुसार डरबन घोषणा में इसराएल पर फिलीस्तीनीयों के विरुद्ध नस्लवाद का आरोप लगाया
गया है। उन्होंने घोषणा की इसलिये भी आलोचना की है कि इसमें यहूदीवाद को एक जातिवादी
एवं नस्लगत विचारधारा के रूप में परिभाषित किया गया है।
तीर्थयात्रियों को सम्बोधित
करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहाः "डरबन घोषणा इस बात को स्वीकार करती है
कि सभी लोग और सब व्यक्ति, विविधता से समृद्ध, मानव परिवार के अंग हैं। उन्होंने उन सभ्यताओं
एवं संस्कृतियों के विकास में योगदान दिया है जिससे मानवजाति की सामान्य धरोहर की रचना
हुई है। सहिष्णुता, बहुलवाद एवं सम्मान को प्रोत्साहित कर और अधिक समावेशी समाज का निर्माण
किया जा सकता है।"
सन्त पापा ने कहा कि इन मूल्यों के आधार पर, हर प्रकार के
भेदभाव एवं असहिष्णुता के उन्मूलन हेतु, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस एवं
दृढ़ कदम उठाये जाने की नितान्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों की प्रतिष्ठा
एवं उनके मूलभूत अधिकारों के सम्मान के लिये आज सबसे अधिक आवश्यकता है शिक्षा के वृहत
कार्य की। सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया अपनी ओर से इस बात पर बल देती है कि ईश प्रतिरूप
में सृजित प्राणी होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मान्यता देकर ही सब
प्रकार की नस्लगत एवं जातिगत हिंसा को रोका जा सकता है।