2009-03-23 12:00:57

"ईश प्रेम युद्ध एवं पाप पर विजयी होता है", बेनेडिक्ट 16 वें


अंगोला में ख्रीस्तीय धर्म के आगमन की पाँचवी शताब्दी के उपलक्ष्य में, रविवार प्रातः, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने राजधानी लुआण्डा के चिमांगोला विशाल मैदान में लगभग दस लाख श्रद्धालुओं के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित किया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए उन्होंने अँगोला एवं सम्पूर्ण अफ्रीका का आह्वान किया कि वे अपने अन्तरमन में ईश्वर की उपस्थिति को स्वीकार कर ईशप्रेम एवं क्षमा को सब लोगों तक पहुँचायें।

रविवार को लुआण्डा के चिमांगोला मैदान में अर्पित ख्रीस्तयाग सन्त पापा की उक्त यात्रा का सबसे विशाल समारोह था जिसमें दक्षिणी अफ्रीकी देशों के लगभग 150 धर्माध्यक्षों सहित कड़ी धूप में अपनी रंगबिरंगी छत्रियाँ लिये, चेहरे से पसीना पोछते, दस लाख से अधिक विश्वासियों ने भाग लिया। अँगोला के रेडियो पर लोगों से लगातार अपील की जा रही थी कि वे अपने साथ छत्रियाँ, पीने का पानी एवं भोजन ले जायें। इस अवसर पर दिये सदेश में सन्त पापा ने इस बात पर बल दिया कि क्षमा, आशा एवं प्रभु ख्रीस्त में नवजीवन के प्रचार हेतु ही वे अफ्रीका पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि सुसमाचार पुनर्मिलन का पाठ सिखाता है और पुनर्मिलन केवल मनपरिवर्तन तथा नई सोच से लाया जा सकता है। सन्त पापा ने कहाः "अफ्रीका में व्याप्त बुराईयों ने निर्धनों को दासों का जीवन यापन करने पर मजबूर कर दिया है तथा भावी पीढियों को, स्थायी एवं न्याय पर आधारित समाज के निर्माण हेतु आवश्यक, संसाधनों से वंचित कर दिया है। यह कितना सच है कि युद्ध उन सब चीज़ों का विनाश कर देता है जो जीवन के लिये मूल्यवान हुआ करती है।"

स्मरण रहे कि सन् 1975 तक अँगोला पुर्तगाल का उपनिवेश राष्ट्र था। यहाँ के लगभग साठ प्रतिशत नागरिक काथलिक धर्मानुयायी हैं। सन् 1491 ई. में पुर्तगाली उपनिवेशी अँगोला आये थे। उपनिवेशियों द्वारा लातीनी अमरीका भेजे गये अफ्रीकी दासों में अँगोला के भी स्थानीय लोग शामिल थे जिन्हें ब्राज़ील के जंगलों एवं खेतों में काम के लिये भेजा गया था। सन् 1975 में अँगोला को पुर्तगालियों से स्वतंत्रता मिली किन्तु इसके बाद विभिन्न दलों के बीच सत्ता एवं प्राकृतिक संसाधनों जैसे हीरे एवं तेल के लिये युद्ध छिड़ गया जो केवल 2002 में ही समाप्त हो सका। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार अँगोला के युद्ध में कम से कम 15,000 लोग मारे गये जिनमें सैकड़ों ख्रीस्तीय मिशनरी भी शामिल थे। युद्ध के बाद भी अँगोला के अनेक भूभागों में सुरंगें बिछी रहीं जिसके कारण हज़ारों विकलांग हो गये हैं तथा कृषि आदि का काम ठप्प रहा है।








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