2009-03-20 13:50:48

अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की द्वितीय महासभा के सदस्यों को संत पापा का संदेश


अंगोला, 20 मार्च, 2009 । मेरे अतिप्रिय कार्डिनल और धर्माध्यक्षो। आज मैं अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की उस महासभा की याद करना चाहता हूँ जो जिसकी पहल संत पापा जोन पौल द्वितीय ने 14 साल पहले की थी जिससे अफ्रीका की कलीसिया में एक नयी आशा का संचार हुआ था।

मुझे खुशी है कि इस वर्ष आप लोगों के प्रयास से अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी महासभा का आयोजन अक्तूबर महीने में होने जा रहा है।

यह सभा विचार करेगी कि किस प्रकार से अफ्रीका कलीसिया मेल-मिलाप, न्याय और शांति की दिशा में विश्व को अपना योगदान देगी।

मैं आप लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्योंकि आपलोगों ने इस महासभा की निर्देशिका भी तैयार कर लिया है।

आज मैं इस बात इस बात को बतलाना चाहता हूँ कि ईश्वर ने आपलोगों को औऱ अफ्रीका की धरती पर विशेष कृपा की है। इसी पावन भूमि में ईश्वर ने अपने पुत्र येसु को एक ज्योति के रूप में भेजा और वह ज्योति अब पूरे संसार को आलोकित कर रहा है।

अफ्रीका लोगों को इस बात का गर्व हो कि ईश्वर ने उन्हें अपना विशेष प्यार दिखाया और उन्हें बुलाया है ताकि वे अपने विश्वास और आशा में सुदृढ़ हों।

आज आपको इस बात के लिये गर्व होना चाहिये क्योंकि अफ्रीका के लोगों ने सुसमाचार का प्रचार करते हुए विश्व के लिये कई शहीदों, संतों और बाइबल के विद्वानों को हमारे लिये दिये हैं।

दूसरी बात जिसकी मैं चर्चा करना चाहूँगा वह है अफ्रीका के स्थानीय धर्मप्रचारकों के उत्साह की जिन्हें यूरोप, लैटिन अमेरिका और एशिया से आये मिशनरियों के साथ मिलकर स्थानीय भाषा और संस्कृति की रक्षा करते हुए येसु की ज्योति को फैलाया है।

मैं आज कुछ संतों की चर्चा करना चाहता हूँ जिन्होंने येसु के लिये अपना सबकुछ अर्पित कर दिया है। उगांडा के शहीद और मिशनरी अन्ना मरी जाभोहे और दानियेले कोमबोनी, सिस्टर अनुवारिते नेन्यापेता, धर्मप्रचारक इसीदोर बाकान्जा और जोसेफिन बाखिता जीवन हमारे लिये अनुकरणीय है।

वाटिकन की द्वितीय महासभा में अफ्रीका का योगदान इस बात के लिये महत्त्वपूर्ण रहा कि आपलोगों के सहयोग से इस बात पर विचार किया जा सका कि एक राष्ट्र के रूप में हमारी पहचान क्या होनी चाहिये और हम इस पहचान को येसुमय कैसे बना सकते हैं।

मेरा विश्वास है कि इस शताब्दी में आपके अलेक्सान्द्रियन विचारधारा के विद्वान पवित्र तृत्व के रहस्य को समझने और कलीसिया को पवित्र और सुदृढ़ वनाने के प्रयास में अपना ठोस योगदान दे पायेंगे।

मेरा पूरा विश्वास है कि आनेवाली अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी महासभा एकता और मेल-मिलाप न्याय और शांति पर गहन चिन्तन करेगी और सुसमाचार के प्रचार के लिये लोगों का मार्गदर्शन करेगी।

मेरी इच्छा है कि लोग इस बात को समझें कि ईसाइयों के लिये मेल-मिलाप से जीवन जीना हमारे लिये अति मह्त्त्वपूर्ण है जिसका उदाहरण खुद येसु मसीह ने दिया है। क्षमा के बिना हम एक शांतिपूर्ण विश्व की कामना नहीं कर सकते हैं।

धर्माध्यक्षों की प्रथम महासभा ने कलीसिया को एक परिवार कहा और दूसरी महासभा का प्रयास हो कि इस परिवार में क्षमा न्याय और शांति को उचित स्थान दिया जाये।

मैं इस संदर्भ में कार्डिनल बेरनादिन गानतिन की बात बताना चाहूँगा। उन्होंने सन् 1988 में कहा था यदि हम चाहते हैं कि न्याय का राज्य स्थापित हो हमें चाहिये कि हम एक-दूसरे को अपना भाई-बहन समझें।

यह बात बिल्कुल सत्य है क्योंकि हमारा विश्वास है कि हम एक ही पिता ईश्वर की संतान हैं।

धर्माध्य़क्ष भाईयो, मैं हाल में सम्पन्न धर्माध्यक्षों की 12 वीं महासभा की याद दिलाना चाहता हूँ जिसमे हमने इस बात पर बल दिया है कि हमें ईश्वर के वचन को सुनना है।

आज मैं अफ्रीका की कलीसिया को बताना चाहता हूँ कि वह भी येसु के वचन को सुने और उसी वचन के द्वारा अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को संचालित करे।

ऐसा करने से ही जीवन को एक नयी आशा मिलेगी और ख्रीस्तीय जीवन येसु हमारे मध्यस्थ और मसीहा पूर्णता प्रदान करेंगे।

आप इस बात को भी याद रखें कि यूखरिस्तीय समारोह ख्रीस्तीय जीवन का केन्द्र हो क्योंकि इसी के द्वारा हम ईश्वरीय जीवन में सहभागी होते हैं और हमारा प्रेम एक-दूसरे के साथ भाई-बहन के रूप में मजबूत होता है।

संत पौल के शब्दों को फिर एक बार मैं आपको बताना दूँ जिसे उन्होंने कुरिंथियों को लिखे था उनका कहना था आप मेल-मिलाप कर लीजिये। आपके बीच किसी प्रकार का झगड़ा न रहे- न धर्म का लिंग, जाति, संप्रदाय और उँच नीच के भेद-भाव का । ऐसा होने से ही अफ्रीका में न्याय और शांति की स्थापना हो सकती है जिसकी आशा अफ्रीका की भावी पीढ़ी कर रही है।

मेरी प्रार्थना और आशा है कि माता मरिया की मध्यस्थता से ईश्वर अफ्रीका की रक्षा करेंग, परिवारों को मजबूत करेंगे और इस पावन धरती को शांति, न्याय और मेल-मिलाप का वरदान देंगे।








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