2009-03-16 15:56:15

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश


श्रोताओ, रविवार 15 मार्च को रोम स्थित संत पेत्रुस महामंदिर के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व दिये गये संदेश में कहाः-

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,

मैं 17 से 23 मार्च तक अफ्रीका की प्रथम प्ररितिक यात्रा करूँगा। मैं कैमरून की यात्रा करूँगा और इसकी राजधानी याउन्दे जाऊंगा ताकि अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की द्वितीय विशेष महासभा के लिए धर्मसभा की कार्य़प्रणाली संबंधी निर्देशिका उन्हें सौपूँगा। यह सिनड या धर्मसभा वाटिकन में अक्तूबर माह में सम्पन्न होगी। वहाँ से मैं लुआंडा के लिए प्रस्थान करूँगा जो अंगोला की राजधानी है। ऐसा देश जहाँ लम्बे गृहयुद्ध के बाद शांति की स्थापना हुई है तथा इस देश का आह्वान किया जाता है कि वह न्याय पर आधारित होकर अपना पुर्ननिर्माण करे।

इस प्रेरितिक दौरे से मैं सम्पूर्ण अफ्रीका महाद्वीप का आलिंगन करना चाहता हूँ। इसकी हजारों भिन्नताएँ और गहन धार्मिक आत्मा, प्राचीन संस्कृतियाँ तथा विकास और मेलमिलाप का पथ, गंभीर समस्याएँ, दुखद व्रण, व्यापक संभावनाएँ और आशाएँ। मैं अफ्रीका के काथलिकों को उनके विश्वास में दृढ़ करने, ईसाईयों को उनके ख्रीस्तीय एकतावर्द्धक समर्पण के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने तथा सबलोगों के लिए शांति की उदघोषणा करने का मंतव्य रखता हूँ जिसे प्रभु ने अपनी कलीसिया को सौंपा है।

जैसा कि मैं अपनी इस मिशनरी यात्रा की तैयारी कर रहा हूँ मेरी आत्मा में प्रेरित संत पौलुस के शब्द प्रतिध्वनित हो रहे हैं जिसे पूजन धर्मविधि हमारे मनन चिंतन के लिए चालीसाकाल के तीसरे रविवार के लिए प्रस्तावित करती है। कुरिंथ के मसीहियों को प्रेरित संत पौलुस लिखते हैं- हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गैर यहूदियों के लिए मूर्खता। किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है।

हाँ प्रिय भाईयो और बहनो मैं अफ्रीका के लिए इस उददेश्य के प्रति जागरूक होकर रवाना हो रहा हूँ। मैं जिनके साथ मिलूँगा उन्हें ख्रीस्त और उनके क्रूस के सुसमाचार, सर्वोच्च प्रेम के रहस्य, दिव्य प्रेम, जो मानव के सब प्रकार की रोकटोक को पराजित करती तथा अंत में क्षमाशीलता और शत्रु को प्रेम करना संभव बनाती है, बताऊँगा। यह सुसमाचार की कृपा है जो विश्व में पूर्ण परिवर्तन लाने में सक्षम है। यह कृपा है जो अफ्रीका को नवीकृत कर सकती है क्योंकि यह गहन और क्रांतिकारी पुर्नमिलन तथा शांति की अदम्य शक्ति उत्पन्न करती है। कलीसिया का आर्थिक, सामाजिक या राजनैतिक लक्ष्य नहीं है, वह ख्रीस्त की उदघोषणा करती है। यह सुनिश्चित है कि सुसमाचार सबलोगों के दिलों का स्पर्श कर पूर्ण परिवर्तन ला सकता है, लोगों और समाज को अंदर से नवीकृत करता है।

19 मार्च को, अफ्रीका की मेषपालीय यात्रा के दौरान ही हम संत योसेफ का समारोही पर्व मनाएँगे जो सार्वभौमिक कलीसिया के संरक्षक और मेरे संरक्षक संत हैं। संत योसेफ जिन्हें एक दूत ने स्वप्न में दर्शन देकर उन्हें मरियम के साथ अफ्रीका के मिस्र देश भागने और नवजात येसु को सुरक्षित स्थान में ले जाने की चेतावनी दी। सम्राट हेरोद से दूर जो उन्हें मार डालना चाहता था। इस प्रकार धर्मग्रंथ का कथन पूरा हुआ। येसु ने इस्राएली लोगों में समान ही अपने प्राचीन पूर्वजों के पदचिह्नों का अनुसरण किया। उन्होंने मिस्र में निर्वासित जीवन जीने के बाद प्रतिज्ञात भूमि में पुनःप्रवेश किया। मैं आगामी तीर्थयात्रा और अफ्रीका के सब लोगों को उनके सामने प्रस्तुत चुनौतियों और आशाओं सहित जो उन्हें अनुप्राणित करती हैं इन्हें इस महान संत की दिव्य मध्यस्थता में अर्पित करता हूँ। मैं विशेष रूप से उनका स्मरण करता हूँ जो भूख, बीमारी, अन्याय, संघर्ष और हर प्रकार की हिंसा के शिकार हुए हैं। दुर्भाग्य से वयस्कों और बच्चों पर हमले जारी हैं यहाँ तक कि मिशनरियों, पुरोहितों, धर्मसमाजियों और स्वयंसेवी कार्यकर्त्ताओं को भी नहीं बक्शा गया है। भाईयो और बहनो, इस यात्रा में अपनी प्रार्थना के द्वारा मेरे साथ रहें। हम अफ्रीका की रानी और माता मरियम की मध्यस्थता की याचना करें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया तथा देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने के बाद सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान किया।








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