बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश 11 मार्च,
2009
बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर
के प्रांगण में देश-विदेश से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में संबोधित
किया। . मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, प्राचीन ख्रीस्तीय लेखकों की शिक्षामाला
को ज़ारी रखते हुए आइये आज हम जर्मनी के प्रेरित संत बोनीफास के लेखों पर मनन-चिंतन करें।
बोनीफास का जन्म इंगलैंड में हुआ था और बपतिस्मा में उन्हें विनफ्रिड नाम दिया
गया था। उन्होंने अपना मठवासी जीवन आरंभ किया और बाद में एक पुरोहित के रूप मे उनका अभिषेक
किया गया।
जौभि कि उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी सुसमाचार प्रचार के ईश्वरीय
बुलावे को सुना और सुसमाचार प्रचार करना आरंभ कर दिया और पूरे उपमहाद्वीप में येसु के
वचन का प्रचार किया। कुछ दिनों के बाद वे रोम आये।
रोम में संत पापा ग्रेगोरी
द्वितीय ने उन्हें जर्मनी भेजा ताकि वे वहाँ मिशनरी कार्य करें। जर्मनी जाकर उन्होंने
अपना नाम बदल दिया और पूरे जर्मनी में ख्रीस्तीय विश्वास का प्रचार करते रहे।
इस
समय उन्होंने ख्रीस्तीय नैतिकता का भी खुल कर प्रचार किया। इसी का परिणाम है कि एक ख्रीस्तीय
संस्कृति का उद्भव और विकास हुआ। बाद में बोनीफास को अपने विशवास को लिये शहीद होना पड़ा
और उसे फुल्दा के मठ में दफ़नाया गया।
आज भी सब मिशनरियों के लिये संत बोनीफास
एक प्रेरणा बने हुए हैं जिन्होंने पूरे उत्साह से सुसमाचार का प्रचार किया और अंतिम तक
अपने विश्वास में अडिग रहे। उनका संबंध पोप के साथ भी सदा ही सौहार्दपूर्ण रहा।
उनके
प्रयासों के कारण ही जर्मनी में जर्मन संस्कृति और रोमन ख्रीस्तीय संस्कृति ने मिल कर
कार्य किया और वहाँ सांस्कृतिक एकता का अच्छा उदाहरण पेश किया।
इतना कहकर संत
पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने इंगलैंड, डेनमार्क, वियेतनाम अमेरिका
और देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों, पर्यटकों, विद्यार्थियों और उनके परिवार के सब सदस्यों
पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।