आदिवासियों की भाषाओं को बचाने का प्रयास हो – धर्माध्यक्ष जोन बपतिस्त
हुवालियेन, 4 मार्च, 2009। तैवान हुवालियेन धर्म प्रांत के एकमात्र आदिवासी प्रति बिशप
जोन बपतिस्त तेसेंग किंग जी ने मिशनरियों के कार्यों की तारीफ की है।
उन्होंने
कहा है कि मिशनरियों ने आदिवासियों की भाषाओं को बचाने का पूरा प्रयास किया।
उन्होंने
यह भी कहा है कि प्रयास होना चाहिये कि स्थानीय भाषाओं में ही पूजन विधि संपन्न हो ताकि
विश्वासी पूरी भक्ति और अर्थपूर्ण तरीके से पूजन-विधि में हिस्सा ले सकें।
धर्माध्यक्ष
जोन बपतिस्त ने इस बात को भी स्वीकारा की यह उतना आसान काम नहीं है क्योंकि आदिवासी समुदाय
छोटा है।
दूसरी बात है कि उस क्षेत्र में रह रहे हैन वंशी चीनी ईसाई आदिवसियों
की भाषाओं को सीखना नहीं चाहते हैं क्योंकि इससे कोई आर्थिक लाभ की उम्मीद नहीं की जा
सकती है।
धर्माध्यक्ष जोन बपतिस्त ने उक्त बातें उस समय कहीं जब 25 फरवरी को
यूनेस्को ने सन् 200 9 के लिये भाषायी आधार पर एक नक्शा जारी किया।
यूनेस्को
के अनुसार भाषा संबंधी इस नक्से से लोगों में भाषाओं के प्रति जागरुकता पैदा होगी और
लोग अपनी-अपनी भाषाओं को बचाने और परिष्कृत करने का प्रयास करेंगे।
शिक्षा विज्ञान
और संस्कृति के लिये बनी इस संगठन ने यह भी बताया कि दुनयी में करीब 6 हजा़र भाषाएं
बोली जातीं हैं पर कुछ भाषाओं के विश्व में हावी हो जाने के कारण अन्य भाषाओं को यह ख़तरा
हो गया है कि समाप्त न हो जायें।
धर्माध्यक्ष ने इस बात की भी जानकारी दी कि
विगत् 50 सालों में वियेनाम की 7 आदिवासी भाषायें लुप्त हो गयी हैं, सात भाषाओं का भविष्य
धूँधला है और 9 अन्य समाप्ति के कग़ार पर हैं।
आदिवासियों के बीच प्रेरितिक कार्य
करने के लिये बनी आयोग के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष सेंग ने कहा कि वे इस बात पर बल देना चाहते
हैं कि पल्लियों में स्थानीय भाषाओं में ही मिस्सा-पूजा संपन्न किया जाये।
ज्ञात
हो कि तैवान में 90 प्रतिशत आदिवासी ईसाई हैं और तैवान के 3 लाख ईसाइयों में एक दिहाई
भाग आदिवासियों का ही है।