जिनीवाः आर्थिक संकट से दुर्बल सर्वाधिक प्रभावित, कहना परमधर्मपीठ का
जिनिवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघीय कार्यालय में विगत सप्ताहान्त विश्वव्यापी आर्थिक
संकट के कारणों एवं प्रभावों पर सम्पन्न विचार विमर्श में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक
एवं वाटिकन के प्रतिनिधि महाधर्माध्यक्ष सिलवानो थॉमासी ने कहा कि आर्थिक संकट का सर्वाधिक
दुष्प्रभाव दुर्बलों को सहना पड़ रहा है।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि आर्थिक मन्दी
मानवाधिकारों के साथ समझौता करने पर मजबूर कर रही है जिसके अन्तर्गत निर्धनों से भोजन,
जल, स्वास्थ्य सेवा एवं रोज़गार जैसे मूलभूत अधिकार छीने जा रहे हैं।
महाधर्माध्यक्ष
ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि जब देश की अधिकांश जनता को उसके सामाजिक एवं
आर्थिक अधिकार नहीं मिलते तब आशा निराशा में बदल जाती तथा शांति पर ख़तरा उत्पन्न हो
जाता है।
वर्तमान आर्थिक मन्दी के कारणों को जानना अनिवार्य बताते हुए महाधर्माध्यक्ष
ने कहा कि इस संकट के आर्थिक, न्यायिक एवं सांस्कृतिक आयाम हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय
गतिविधि को केवल लाभ तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि इससे संलग्न सभी लोगों के कल्याण
की बात भी सोची जानी चाहिये। महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि नैतिक आधार की कमी ने वर्तमान
आर्थिक संकट को निम्न, मध्य एवं उच्च आमदनी वाले देशों को एक समान प्रभावित कर दिया है।
महाधर्माध्यक्ष ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि संयुक्त राष्ट्र संघ
द्वारा सन् 2015 तक निर्धनता को पचास प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य आर्थिक मंदी
के कारण पूरा नहीं किया जा सकेगा तथा विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार दो अमरीकी डॉलर
प्रतिदिन पर गुज़ारा करनेवाले लोगों में पाँच करोड़ तीस लाख और जुड़ जायेंगे।