2009-02-11 12:34:24

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
11 फरवरी, 2009



बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में संबोधित किया। उन्होंने अंग्रजी भाषा में कहाः-

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षा में हम फिर से महान् ख्रीस्तीय लेखकों के बारे में मनन-चिन्तन करना जारी करें।

आज हम जिस महान् लेखक के बारे में चिन्तन करेंगे उनका नाम है जोन क्लिमाकुस, जिनका जन्म सन् 575 ईस्वी में हुआ था।

जोन क्लिमाकुस ने एक आध्यात्मिक यात्रा पर एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने दुनियावी विरक्ति और प्रेमपूर्ण समर्पण के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं।

उन्होंने आध्यात्मिक यात्रा को तीन चरणों में बाँटे हैं और उन्हें "आध्यात्मिक सीढ़ी" कहा है। पहला भाग हमें यह बताता है कि हमें दुनियावी मोह-माया से अलग होना है, ईश्वर की ओर लौटना है और ईश्वर के साथ अपना संबंध गहरा करना है।

दूसरे चरण में उन्होंने यह बताया है कि व्यक्ति के दिल में आत्मिक संघर्ष होता है। आत्मा चाहती है कि वह गुणों को अपनाये और जब व्यक्ति इसमें सफल हो जाता है तब वह अत्मसंयमी बन जाता है और ईश्वरीय कृपा को ग्रहण कर पाता है।

आध्यात्मिक यात्रा का तीसरे चरण में जोन बताते हैं कि व्यक्ति को अपने हर निर्णय को तब ही कार्यरूप देना चाहिये जब उसके अंतःकरण में इससे शांति की अनुभूति हो रही हो। ऐसा करने से ही हमारी आत्मा में को वास्तविक शांति मिलती है।

जोन ने इस बात पर भी बल दिया है कि हमारे दिल मे ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास गहरा प्रेम और पूर्ण आशा होनी चाहिये।

इतना ही नहीं जोन के अनुसार हमें अपने पड़ोसियों को इस प्रकार प्रेम करना चाहिये कि इससे ईश्वरीय प्रेम प्रकट हो सके।

जोन का मानना है कि हम अपने बपतिस्मा के द्वारा येसु मसीह के दुःख, मृत्यु और पुनरुत्थान में सहभागी होते हैं। हम इसी लिये बुलाये गये हैं ताकि हम पवित्र आत्मा की कृपा से सदा ईश्वर की ओर लौटते रहें और अपने आपको ईश्वर के योग्य बनायें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने जापान, तैवान, डेनमार्क, इंगलैंड, आयरलैंड और अमेरिका से आये तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।













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