ओड़िसा, 8 फरवरी, 2009। कंधमाल में ईसाई विरोधी दंगे के दरमियान ध्वस्त बटीकोला चर्च
की जगह एक मंदिर का निर्माण शुरु किया गया है।
एशियान्यूज के समाचार के अनुसार
शर्णार्थी शिविरों से घर लौट रहे ईसाइयों पर दबाव डाला जा रहा है कि वे हिन्दुत्व को
स्वीकार करें।
ग्लोबल कौंसिल के साजन जोर्ज ने आगे बताया कि उन्होंने अतिवादी
हिन्दुओं के द्वारा ईसाइयों को जबरजस्ती करते हुए अपनी आँखों से देखा है। ज्ञात हो
कि पिछले साल सन् 2008 ईस्वी के अगस्त में ईसाई विरोधी हिंसा में बटी कोला के गिरजाघर
को ध्वस्त कर दिया गया था। घटना के अनुसार 2 फरवरी को उदयगिरि शिविर में रह रहे करीब
17 ईसाई अपने घर लौटने के उद्देश्य से अपने गाँव झिमांगिया पहुँचे तो कुछ हिन्दुओं ने
उन्हें घेर लिया और कहा कि यदि वे गाँव लौटना चाहते हैं तो उन्हें हिन्दुत्व स्वीकार
करना पड़ेगा। ज्ञात हो कि ईसाई विरोधी हिंसा में अतिवादियों ने अपने गुस्सा का बट्टीकोला
अपना प्रमुख निशाना बनाया था और आरोप लगाया था कि 85 वर्षीय स्वामी लक्ष्मीनन्दा सरस्वती
की हत्या की साजिस बट्टीकोला के पल्ली मीटिंग में रची गयी थी। यह आरोप साक्ष्य के
बिना अब तक आधारहीन है। इसके बाद भड़की हिंसा में करीब 500 लोगों ने अपनी जानें
गंवायीं है और करीब 50 हज़ार लोगों के शरणार्थी शिविरों में महीनों तक शरण लेनी पड़ी
थी। साजन ने यह भी बताया कि बट्टीकोला के अतिवादी हिन्दुओं ने 15 सूत्री नियम बनाये
हैं। इनमें से एक नियम है कि उस क्षेत्र में रह रहे ईसाइयों को हमेशा हिन्दुओ के
लिये रास्ता छोडना है और सार्वजनिक स्नानागारों में ईसाइयों को सबसे अंतिम में स्नान
करना है। साजन ने यह भय जताया है कि सरकार ने यह दावा किया है कि कंधमाल की स्थिति
सामान्य हो गई है पर स्थानीय ईसाइयों का मानना है कि अभी भी पूरे क्षेत्र में दहशत का
वातावरण बना हुआ है। साजन ने यह भी बताया कि इतिहास गवाह है कि विगत वर्षों तक ईसाई
और हिन्दु एक साथ मिल कर त्योहार और अन्य सार्वजनिक कार्य एक साथ मिल कर करते रहे हैं
। यह भी बताया गया कि बट्टीकोला पल्ली का आरंभ सन 1995 ईस्वी में किया गया पर स्वामी
लक्षमानन्दा के नेतृत्व में सन् 2000 ईस्वी में इसे ढह देने का प्रयास किया गया था।