2009-02-02 15:51:28

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश


श्रोताओ, रविवार पहली फरवरी को रोम स्थित संत पेत्रुस महामंदिर के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व दिये गये संदेश में कहाः-

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,

इस वर्ष, आज के रविवार के लिए पूजन धर्मविधि हमारे मनन चिंतन हेतु संत मारकुस रचित सुसमाचार से पाठ का प्रस्ताव करती है। इस सुसमाचार की एक प्रमुख विशेषता है तथाकथित मुक्तिदायी आशा संबंधी रहस्य। यह तथ्य कि कुछ क्षण के लिए येसु यह नहीं चाहते हैं कि उनके शिष्यों वाले समूह के बाहर कोई व्यक्ति यह जाने कि वे ही ख्रीस्त हैं, ईशपुत्र हैं। यही कारण है कि वे बहुधा प्रेरितों और बीमार लोगों को जिन्हें चंगा करते हैं उन्हें मना करते हैं कि वे उनकी अस्मिता के बारे में किसी से नहीं कहें। उदाहरण के लिए- इस रविवार के लिए निर्धारित पाठ एक अपदूतग्रस्त व्यक्ति के बारे में बताता है जो अचानक चिल्ला उठता हैः- ईसा नाजरी हम से आपको क्या क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरूष। ईसा ने उसे यह कहते हुए डाँटा- चुप रह, इस मनुष्य में से बाहर निकल जा। सुसमाचार लेखक कहते हैं कि अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए निकल गया। येसु न केवल अपदूतों को मनुष्यों से बाहर निकाल कर उन्हें सबसे बुरी दासता से मुक्त करते हैं बल्कि अपदूतों को उनकी अपनी पहचान को प्रकट करने से मना करते हैं। वे इस रहस्य पर बल देते हैं क्योंकि उनके मिशन की पूर्णता दाँव पर लगी है जिसपर हमारी मुक्ति निर्भर करती है। वस्तुतः येसु जानते हैं कि पाप के बंधन से मानवजाति को मुक्त करने के लिए उन्हें सच्चे पास्काई मेमने के रूप में क्रूस पर बलिदान होना है। बुराई अपनी ओर से उनका ध्यान भंग करने का प्रयास करती है और इसे शक्तिशाली और सफल मसीह के मानवीय तर्क की दिशा की ओर उन्मुख करना चाहती है। येसु का क्रूस शैतान का अंत होगा और यही कारण है कि येसु अपने शिष्यों को यह सिखाने से नहीं रूकते हैं कि उन्हें दुःख भोगना, अपमानित किया जाना और क्रूस पर मरना होगा। दुःख भोगना उनके मिशन का अंतरंग भाग था।

प्रेम की खातिर येसु दुःख भोगते और क्रूस पर मर जाते हैं। जब हम इस पर चिंतन करते हैं तो हम देखते हैं कि इस तरह से उन्होंने हमारी पीड़ा को अर्थ प्रदान किया। एक अर्थ जिसे हर युग के अनेक स्त्रियों और पुरूषों ने समझा और अपनाया। उन्होंने शारीरिक और नैतिक परीक्षाओं के बिषम संकटों के बावजूद गहन शांति को अपने अंदर अनुभव किया। वस्तुतः पीड़ा में जीवन की ताकत शीर्षक है जिसे इताली धर्माध्यक्षों ने आज के जीवन संबंधी दिवस के पारम्परिक संदेश के लिए चुना है मैं उनके संदेश में पूरे दिल से शामिल होता हूँ जिसमें हम अपने लोगों के लिए मेषपालों के प्रेम, सत्य की उदघोषणा करने का साहस, स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के साहस को देखते हैं। उदाहरण के लिए सुखमृत्यु पीड़ा का भ्रामक समाधान है,ऐसा समाधान जो मानव के योग्य नहीं है। किसी को मृत्यु देना वह चाहे कितना भी उदार क्यों न हो सच्चा जवाब नहीं है लेकिन प्रेम का साक्ष्य देना जो हमें मानवीय तरीके से दुःख और पीड़ा का सामना करने में मदद करता है। हमें विश्वास है कि कोई भी आँसू जो पीड़ा सहनेवाले की है या उनकी जो पीड़ा सहनेवालों के समीप हैं ईश्वर नहीं देखते हों।

कुँवारी मरियम ने अपने ममतामयी दिल में अपने पुत्र के रहस्य को धारण किया। पुनरूत्थान की आशा से संबल पाकर वे येसु के दुःखभोग और क्रूस आरोपण के दुःखद पलों में सहभागी हुई। उन्हें हम उन सबलोगों को अर्पित करते हैं जो हर अवस्था में जीवन की सेवा कर रहे हैं। हम अभिभावकों, चिकित्सा कर्मियों पुरोहितों, धर्मसमाजियों, शोधकर्त्ताओं, स्वयंसेवकों और अन्य सब लोगों के लिए प्रार्थना करें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया। उन्होंने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ कर सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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