2009-01-28 11:01:20

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश



बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
28 जनवरी, 2009

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में संबोधित किया। उन्होंने कहाः-

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, प्रेरित संत पौल की शिक्षामाला को जारी रखते हुए आज हमें संत पौल के उन दो पत्रों पर मनन चिन्तन करें जिसे उन्होंने तिमोथी और तीतुस को लिखा था।

वैसे तो इन पत्रों के बारे में अब भी विद्वानों में एक मत नहीं है कि वास्तव में संत पौल ने ही इन पत्रों को लिखा था। हाँ, संत पौल के बाद के पत्रों को पढ़ने से पता चलता है कि इस प्रकार के पत्र संत पौल के द्वारा ही लिखे जा सकते हैं।

संत पौल ने इन पत्रों में यह बताना चाहा है कि हमें सुसमाचार पर अपना विश्वास सुदृढ़ रखना चाहिये और सुसमाचार को समझऩे का प्रयास करना चाहिये।

संत पौल यह भी बताते हैं कि धर्मग्रंथ और कलीसिया की पवित्र परंपरा दोनों को साथ में लिये जाने की आवश्यकता है।

यह भी विश्वास करना चाहिये कि इन दोनों की नींव ईश्वर ने ही डाली है और इसी में कलीसिया का जीवन आधारित है।

इतना ही नहीं, इन्हीं दोनों बातों धर्मग्रंथ और कलीसिया की परंपरा के द्वारा ही कलीसिया प्रेरित होती है और लोगों को सुसमाचार सुनाने के अपने मिशन को पूरा करती है।

तीतुस और तिमोथी को लिखे पत्र में ही संत पौल ने इस बात का जिक्र किया है कि कलीसिया को चलाने के लिये एक ढाँचे की आवश्यकता है जिसमें धर्माध्यशक्षों की भूमिका के बारे में चर्चा की गयी है। इसमें यह भी बताया गया है कि धर्माध्यक्ष ईश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं और कलीसिया में एक धर्मपिता की भूमिका निभाने के लिये चुने जाते हैं।

आज इन्हीं बातों का मनन-ध्यान करते हुए आइये हम प्रेरित संत पौल की मध्यस्थता से ईश्वर से निवेदन करें कि वे हमारे सब धर्म गुरुओं को भला चरवाहा बनने में मदद दें ताकि वे पूरी कलीसिया को एकता के एकसूत्र में बाँध सकें औऱ लोगों के विश्वास को मजबूत कर सकें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।












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