मध्य पूर्वी देशों मे शांति के लिये दृढ़ राजनीतिक इच्छा चाहिये
न्यूयोर्क, 16 जनवरी, 2009। मध्य पूर्वी देशों मे शांति कायम नहीं पाने के लिये दृढ़
राजनीतिक इच्छा शक्ति जिम्मेदार है।
उक्त बातें संयुक्त राष्ट्र संघ में संत
पापा के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष चेलिस्तीनो मिल्योरे ने उस समय कहीं जब वे
यूएन की जेनरल असेम्बली के 10 वें विशेष सत्र में सभा को संबोधित कर रहे थे। इस
सभा में इस्राएल की पूर्वी येरुसालेम पर अवैधानिक कब्ज़ा और पलीस्तीन के अन्य क्षेत्रों
पर कब्जे विषय पर चर्चा हो रही थी। महाधर्माध्यक्ष ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते
हुए कहा कि वे गज़ा के उन आम नागरिकों को अपनी सहानुभूति व्यक्त करना चाहते हैं जिन्होंने
इस्राएली हमास संघर्ष में अपने परिवार के सदस्यों को खोया है। लोगों को याद दिलाया
कि यूएन की सुरक्षा परिषद् ने एक सप्ताह पहले ही एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये हैं और
उन्होंने माँग की है कि इस संघर्ष को तुरन्त रोका जाये और संघर्ष से पीड़ित लोगों के
लिये चिकित्सा सुविधा देने की अनुमति और उपाय किये जायें।
उन्होंने इस बात पर
गहरी चिंता जतायी है कि दोनों पक्षों ने संघर्ष के तौर तरीको को ध्यान नहीं दिया है और
दोनों ओर से बड़ी संख्या में आम नागरिकों की जाने गयीं हैं। धर्माध्यक्ष मिल्योरे
ने कहा कि 60 साल के इतिहास में इस्राएल और पलीस्तिन दोनों देशों ने एक दूसरे पर बहुत
आक्रमण किये हैं पर इसमें कई वार्ता के दौर भी चलें हैं। दुर्भाग्य यह है कि दोनों
देशों ने अब तक शांति और सहअस्तित्व की दिशा में कोई ख़ास उपलब्धियाँ नहीं मिल पायीं
हैं। उन्होंने फिर से अपनी बात को दुहराते हुए कहा कि इस प्रकार की समस्याओं के समाधान
के लिये सबसे बड़ी बात है कि दोनों पक्ष अपनी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का उपयोग करें।
उन्होंने सुरक्षा परिषद् से अपील की है कि वे संघर्ष विराम के कुछ नये तरीके निकालें
और मध्यपूर्वी क्षेत्र में स्थायी शांति के लिये पहल करें ताकि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व
और सहयोग का वातावरण वन सके।